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वर्धमानादनभ्राज एवं गौतमचातकः । लेभे सूक्तामृतं नाम्ना साऽऽषाढी गुरुपूर्णिमा ॥३८॥ इस प्रकार जिस दिन श्री वर्धमान रूप मेघराज से गौतम रूप चातक ने सत्य सूक्त वचनामृत को प्राप्त किया, वह दिन आषाढ़ी गुरु पूर्णिमा है ॥३८॥ ____ भावार्थ - यतः आषाढ़ सुदी पूर्णिमा को गौतम ने वीर भगवान् रूप गुरु को पाकर और स्वयं शिष्य बनकर वचनामृत का पान किया । अतः तभी से लोग उसे गुरु पूर्णिमा कहते हैं ।
वीरवलाहकतोऽभ्युदियाय गौतमके किकृतार्थनया यः ।
अनुभुवनं स वारिसमुदायः श्रावणादिमदिने निरपायः ॥३९॥ गौतम रूप मयूर के द्वारा की गई प्रार्थना से वीर भगवान् रूप मेघ से जो वाणी रूप जल का निर्दोष प्रवाह प्रकट हुआ, वह श्रावण मास के प्रथम दिन सर्व भुवन में व्याप्त हो गया ॥३९।। भावार्थ - भगवान् महावीर का प्रथम उपदेश श्रावण कृष्णा प्रतिपदा को हुआ ।
श्रीमान् श्रेष्ठ चतुर्भुजः स सुषुवे भूरामलेत्याह्वयं । वाणीभूषणवर्णिनं घृतवरी देवी च यं धीचयम् । श्रीमत्तीर्थक रस्य संसदमगाच्छीगौतमस्त्रयुत्तरेऽ . । स्मिन् दशमे च निरे तितेन रचिते वीरोदयस्योज्वरे ॥१३॥ इस प्रकार श्रीमान् सेठ चतुर्भुजजी और घृतवरी देवी से उत्पन्न हुए वाणी भूषण, बाल-ब्रह्मचारी पं. भूरामल वर्तमान मुनि ज्ञानसागर के द्वारा रचे गये इस उज्वल वोरोदय काव्य में भगवान् की सभा का और उसमें गौतम इन्द्रभूति के जाने का वर्णन करने वाला यह तेरहवां सर्ग समाप्त हुआ ॥१३॥
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