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नवमसि
LITERATULAR अथ प्रभोरित्यभवन्मनोधनं निभालयामो वउरं जगज्जनम् ।
वृष विलुम्पन्तमहो सनातन यथात्म विष्वक्तनुभृन्निभालनम् ॥१॥ विवाह कराने का प्रस्ताव स्वीकार न करने के पश्चात् वीर प्रभु के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ - अहो मैं संसार के लोगों को मूर्खता और मूढ़ताओं से भरा हुआ देख रहा हूँ । तथा प्राणिमात्र को अपने समान समझने वाला सनातन धर्म विलुप्त होता हुआ देख रहा हूँ, इसलिए मुझे उसकी संभाल करना चाहिए ॥१॥
तिष्ठेयमित्यत्र सुखेन भूतले स्खलत्यथान्यः स पुनः परिस्खलेत् । किं चिन्तया चान्यजनस्य मन्मनस्यमुं स्वसिद्धान्तमुपैत्यहो जनः ॥२॥
अहो, ये संसारी लोग कितने स्वार्थी हैं । वे सोचते हैं - कि संसार में मैं सुख से रहूँ, यदि अन्य कोई दुःख में गिरता है, तो गिरे, हमारे मन में अन्य जन की चिन्ता क्यों हो ? इस प्रकार सर्व जन अपने-अपने स्वार्थ-साधन के सिद्धान्त को प्राप्त हो रहे हैं ॥२॥
स्वीयां पिपासां शमयेत् परासृजा क्षुधां परप्राणविपत्तिभिः प्रजा । स्वचक्षुषा स्वार्थपरायणां स्थितिं निभालयामो जगतीद्दशीमिति ॥३॥
आज लोग दूसरे के खून से अपनी प्यास शान्त करना चाहते हैं और दूसरे के प्राणों के विनाश से अर्थात् उनके मांस से अपनी भूख मिटाना चाहते हैं । आज मैं अपनी आंख से जगत् में ऐसी स्वार्थपरायण स्थिति को देख रहा हूँ ॥३।।
अजेन माता परितुष्यतीति तन्निगद्यते धूर्तजनैः कदर्थितम् ।
पिबेन्नु मातापि सुतस्य शोणितमहो निशायामपि अर्यमोदितः ॥४॥ ____ अहो ! धूर्त जन कहते हैं कि जगदम्बा बकरे की बलि से सन्तुष्ट होती है ! किन्तु यदि माता भी पुत्र के खून को पीने लगे, तब तो फिर रात्रि में भी सूर्य उदित हुआ समझना चाहिए ॥४॥
जाया-सुतार्थ भुवि विस्फुरन्मनाः कुर्यादजायाः सुतसंहृतिं च ना ।
किमुच्यतामीद्दशि एवमार्यता स्ववाञ्छितार्थं स्विदनर्थकार्यता ॥५॥ ___ इस भूतल पर आज मनुष्य अपनी स्त्री के पुत्र-लाभ के लिए हर्षित चित्त होकर के अजा (बकरी) के पुत्र का संहार कर रहा है ! ऐसी आर्यता (उच्च कुलीनता) को क्या कहा जाय ! यह तो अपने में वांछित कार्य की सिद्धि के लिए अनर्थ करने वाली महा नीचता है ॥५॥
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