SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Preeर ररररreererrrrrrrr इन्द्रियाणां तु यो दासः स दासो जगतां भवेत् । इन्द्रियाणि विजित्यैव जगजेतृत्वमाप्नुयात् ॥३७॥ हे तात ! सच बात तो यह है कि जो इन्द्रियों का दास है, वह सर्व जगत् का दास है । किन्तु इन्द्रियों को जीत करके ही मनुष्य जगज्जेतृत्व को प्राप्त कर सकता है ॥३७॥ सद्योऽपि वशमायान्ति देवाः किमुत मानवाः । यतस्तद्ब्रह्मचर्यं हि वताचारेषु सम्मतम् ॥३८॥ जो पुरुष ब्रह्मचारी रहता है, उसके देवता भी शीघ्र वश में आ जाते हैं, फिर मनुष्यों की तो बात ही क्या है । इसीलिए ब्रह्मचर्य सर्व व्रताचरणों में श्रेष्ठ माना गया है ॥३८॥ पुरापि श्रूयते पुत्री ब्राह्मी वा सुन्दरी पुरोः । अनूचानत्वमापन्ना स्त्रीषु शस्यतमा मता ॥३९॥ सुना जाता है कि पूर्वकाल में भी पुरुदेव ऋषभनाथ की सुपुत्री ब्राह्मी और सुन्दरी ने भी ब्रह्मचर्य को अंगीकार किया है और वे सर्व स्त्रियों में प्रशस्ततम (सर्वश्रेष्ठ) मानी गई हैं ॥३९॥ । उपान्त्योऽपि जिनो बाल-ब्रह्मचारी जगन्मतः । पाण्डवानां तथा भीष्म-पितामह इति श्रुतः ॥४०॥ उपान्त्य जिन पार्श्वनाथ भी बाल ब्रह्मचारी रहे हैं, यह सारा जगत् जानता है । तथा पाण्डवों के भीष्म पितामह भी आजीवन ब्रह्मचारी रहे, ऐसा सुना जाता है ॥४०॥ अन्येऽपि बहवो जाताः कुमार श्रमणा नराः । सर्वेष्वपि जयेष्वग्र-गतः कामजयो यतः ॥४१॥ अन्य भी बहुत से मनुष्य कुमार-श्रमण हुए हैं, अर्थात् विवाह न करके कुमार-काल में ही दीक्षित हुए हैं । हे तात ! अधिक क्या कहें- सभी विजयों में काम पर विजय पाना अग्रगण्य है ॥४१॥ हे पितोऽयमितोऽस्माकं सुविचारविनिश्चयः । नरजन्म दधानोऽहं न स्यां भीरुवशंगतः ॥४२॥ इसलिए हे पिता ! हमारा यह दृढ़ निश्चित विचार है कि मनुष्य जन्म को धारण करता हुआ मैं स्त्री के वशंगत नहीं होऊंगा ॥४२॥ किं राजतुक्तोद्वाहेन प्रजायाः सेवया तु सा । तदर्थमेवेदं ब्रह्मचर्यमाराधयाम्यहम् ॥४३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy