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________________ स्र ररररररररररररररररररररररररर यदा समवयस्केषु बालोऽयं समवर्तत । अस्य स्फूतिविभिन्नैव काचेषु मणिवत्तदा ॥१२॥ जब यह बाल स्वरूप भगवान् अपने समवयस्क बालकों में खेला करते थे, तो उनकी शारीरिक प्रभा औरों से विशेषता को लिए हुए पृथक ही दिखाई देती थी, जैसे कि काचों के मध्य में अवस्थित मणि की शोभा निराली ही दिखती है ॥१२॥ समानायुष्क देवौघ-मध्येऽथो बालदेवराट । कालक्षेपं चकारासौ रममाणों निजेच्छया ॥१३॥ इस प्रकार समान अवस्था वाले देव-कुमारों के समूह के बीच अपनी इच्छानुसार नाना प्रकार की क्रीड़ाओं को करते हुए वे देवाधिपति बाल जिनदेव समय व्यतीत कर रहे थे ॥१३॥ दण्ड मापद्यते . मोही गर्तमेत्य मुहुर्मुहुः । महात्माऽनुबभूवेदं बाल्यकीडासु तत्परः ॥१४॥ बाल्य-क्रीड़ाओं में तत्पर यह महात्मा वीर प्रभु गिल्ली डण्डा का खेल खेलते हुए ऐसा अनुभव करते थे कि जो मोही पुरुष संसार रूप गड्ढे में गिर पड़ता है, वह बार-बार इस गिल्ली के समान दण्ड को प्राप्त होता है ॥१४॥ भावार्थ - जैसे गड्ढे में पड़ी गिल्ली बार-बार डण्डे से पीटे जाने पर ही ऊपर को उठकर आती है, इसी प्रकार से जो मोही जन संसार रूप गर्त में पड़ जाते हैं, वे बार-बार नाना प्रकार के दुःख रूप डण्डों से दण्डित होने पर ही ऊपर आते हैं, अर्थात् अपना. उद्धार कर पाते हैं । . परप्रयोगतो . द्दष्टे राच्छादनमुपेयुषः । शिरस्याघात एव स्याद्दिगान्ध्यमिति गच्छतः ॥१५॥ - कभी-कभी आंख-मिचौनी का खेल खेलते हुए वे बाल रूप वीर भगवान् ऐसा अनुभव करते थे कि जो जीव पर-प्रयोग से अपनी दष्टि के आच्छादन को प्राप्त होता है. अर्थात अनात्म- बद्धि होकर मोह के उदय से जिसका सम्यग्दर्शन नष्ट हो जाता है, वह दिगान्ध्य होकर शिर के आधात को ही प्राप्त होता है ॥१५॥ भावार्थ - आंख-मिचौनी के समान ही जिस जीव की दृष्टि मोह- कर्म के द्वारा आच्छादित रहती है, वह दूसरों से सदा ताड़ना ही पाता है और दिशान्ध होकर इधर-उधर भटकता रहता है । नवालक प्रसिद्धस्य बालतामधिगच्छतः मुक्तामयतयाऽप्यासीत्कु वलत्वं न चास्य तु ॥१६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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