________________
????????????????| 6 |୧୧୧ ୧୧୧୧ ୧୧୧୨ ୧୧୧୯୯
भावार्थ - वसन्त काल में सूर्य की गति धीमी हो जाती है, उसे लक्ष्य में रख करके कवि ने यह उत्प्रेक्षा की है ।
ननु रसालदलेऽलिपिकावलिं विवलितां ललितामहमित्यये । भुवि वशुकरणोचितयन्त्रक-स्थितिमिमां मदनस्य सुमाशये ॥३०॥
इस वसन्त ऋतु में आम्र वृक्ष के पत्तों पर जो आंकी-बांकी नाना प्रकार की पंक्तियां बना कर भौरे और कोयल बैठे हुए हैं, वे कोयल और भौरे नहीं है, किन्तु संसार में लोगों को मोहित करने के लिए फूलों पर लिखे हुए कामदेव के वशीकरण यंत्र ही हैं, ऐसा मैं समझता हूँ ॥३०॥
न हि पलाशतरोर्मुकुलोद्गतिर्वनभुवां नखर क्षतसन्ततिः । लसति किन्तु सती समयोचितासुरभिणाऽऽकलिताऽप्यतिलोहिता ॥
बसन्त ऋतु में पलाश (ढ़ाक) का वृक्ष फूलता है, वे उसके फूल नहीं, किन्तु वन-लक्ष्मी के स्तनों पर नख-क्षत (नखों के घाव रूप चिह्न) की परम्परा ही है, जो कि बसन्त रूपी रसिक पुरुष ने उस पर की है, इसी लिए वह अति रक्त वर्ण वाली शोभित हो रही है ॥३१॥
अयि लवङ्गि ! भवत्यपि राजते विकलिते शिशिरेऽपि च शैशवे ।
अतिशयोन्नतिमत्स्तवक स्तनी भ्रमरसङ्ग वशान्मदनस्तवे ॥३२॥ __ अयि लवङ्गलते ! तुम बड़ी सौभाग्यवती हो, क्योंकि तुम्हारा शिशिरकाल रूपी शैशवकाल तो बीत चुका है और अब नव-यौवन अवस्था में पुष्पों के गुच्छों-रूपी उन्नत स्तनों से युक्त हो गई हो, तथा भौंरों के प्रसंग को प्राप्त होकर काम-प्रस्ताव को प्राप्त हो रही हो ॥३२॥
रविरयं खलु गन्तुमिहोद्यतः समभवद्यदसौ दिशमुत्तराम् । दिगपि गन्धवहं ननु दक्षिणा वहति विप्रियनिश्वसनं तराम् ॥३३॥
इस वसन्त काल में सूर्य दक्षिण दिशा रूपी स्त्री को छोड़ कर उत्तर दिशा रूपी स्त्री के पास जाने के लिए उद्यत हो रहा है, इसलिए पति-वियोग के दुःख से दुखित होकर के ही मानों दक्षिण दिशा शोक से भरे हुए दीर्घ नि:श्वास छोड़ रही है, सो वही नि:श्वास दक्षिण वायु के रूप में इस समय वह रहा है ॥३३॥
मुकुलपाणिपुटेन रजोऽब्जिनी द्दशि ददाति रुचाऽम्बुजजिद्द्दशाम् । स्थलपयोजवने स्मरधूर्तराड् ढरति तद्धृदयद्रविणं रसात् ॥३४॥
जिस वन में गुलाब के पुष्प और लाल कमल फूल रहे हैं, वहां पर कमलिनी तो अपने मुकुलित पाणि- (हस्त) पुट के द्वारा कमल की शोभा को जीतने वाली स्त्रियों की आंखों में पुष्प-पराग रूपी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org