________________
सररररररररररररररर 56रररररररररररररररररर
प्रश्न- तो फिर उस मोह का विनाश कैसे सम्भव है ? उत्तर - राग-रहित पुरुष के हृदय में उत्पन्न हुई विशुद्धि से मोह का विनाश सम्भव है । प्रश्न - राग का अभाव कैसे होता है ? उत्तरपरमात्म विषयक बुद्धि से । प्रश्न- परमात्म-विषयक उन्नत (द्दढ़) बुद्धि कैसे होती है ? उत्तर - उपाय से अर्थात् भगवान् की भक्ति करने से, उनके वचनों पर श्रद्धा रखने से और उनके कथनानुसार आचरण से परमात्म-विषयक बुद्धि प्रकट होती है ॥२९॥
रागः कियानस्ति स देह-सेवः, देहश्च कीहक् शठ एष एव । कथं शठः पुष्टिमितश्च नश्यत्ययं जनः किन्तु तदीयवश्यः ॥३०॥
प्रश्न- राग क्या वस्तु है ? उत्तर - देह की सेवा करना ही राग है । प्रश्न- यह देह कैसा है ? उत्तरयह शठ (जड़) है । प्रश्न- यह शठ क्यों है ? उत्तर - क्यों कि यह पोषण किये जाने पर भी नष्ट हो जाता है । किन्तु दुःख है कि यह संसारी प्राणी फिर भी उसी के वश हो रहा है ॥३०॥
कुतोऽस्य वश्यो न हि तत्त्वबुद्धिस्तद्-धीः कुतः स्याद्यदि चित्तशुद्धिः । शुद्धेश्च किं द्वाः जिनवाक्प्रयोगस्तेनागदेनैव निरेति रोगः ॥३१॥
प्रश्न- तो फिर यह जीव उसके वश क्यों हो रहा है ? उत्तर - क्योंकि इसके पास तत्त्व बुद्धि, अर्थात् हेय-उपादेय का विवेक नहीं है । प्रश्न - फिर यह तत्त्व-बुद्धि कैसे प्राप्त होती है ? उत्तरयदि चित्त में शुद्धि हो । प्रश्न- उस चित्त-शुद्धि का द्वार क्या है ? उत्तर-जिन वचनों का उपयोग करना, अर्थात् उन पर अमल करना ही चित्त शुद्धि का द्वार है और इस औषधि के द्वारा ही संसार का यह जन्म-मरण के चक्र-रूप रोग दूर होता है ॥३१॥
मान्यं कुतोऽर्ह द्वचनं समस्तु सत्यं यतस्तत्र समस्तु वस्तु । तस्मिन्नसत्यस्य कुतोऽस्त्वभाव उक्ते तदीये न विरोधभावः ॥३२॥
प्रश्न- अर्हन्त जिनेन्द्र के ही वचन मान्य क्यों है ? उत्तर- क्योंकि वे सत्य हैं और सत्य वचन में ही वस्तु-तत्त्व समाविष्ट रहता है । प्रश्न- अर्हद्वचनों में असत्यपने का अभाव क्यों है ? उत्तर- क्योंकि उनके कथन में पूर्वापर विरोध-भाव नहीं है ॥३२॥
किं तत्र जीयादविरोधभावः विज्ञानतः सन्तुलितः प्रभावः ।
अहो न कल्याणकरी प्रणीतिर्गतानुगत्यैवमिहास्त्वपीति ॥३३॥
प्रश्न - उनके वचनों में अविरोध भाव क्यों है ? उत्तर - क्योंकि उनके वचन विज्ञान से अर्थात् कैवल्य रूप विशिष्ट ज्ञान से प्रतिपादित होने के कारण सन्तुलित प्रभाव वाले हैं । अहो देवियों ! जो बातें केवल गतानुगतिकता से (भेड़ चाल से) की जाती हैं, उनका आचरण कल्याणकारी नहीं होता ॥३३॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org