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________________ ୧୧୦୦୨୧୧୭୦୨୧୧୦୦୦୧a 46 ??? ????????????? पांचवें स्वप्न में तुमने जो भ्रमरों से गुजार करती हुई दो मालाएं देखी हैं, वे यह प्रकट करती हैं कि तुम्हारा पुत्र इस लोक में सुयश की सुगन्धि के समूह से समस्त जगत् को व्याप्त करने वाला, भव्य जीव रूपी भ्रमरों से सेवित और सम्मानित होगा ॥४५॥ निजशुचिगोप्रततिभ्यो वृषामृतस्योरुधारया सिञ्चन् । .. विधुरिव कौमुदमिह वा कलाधरो ह्ये धयेत्किञ्च ॥४६॥ छठे स्वप्न में तुमने जो चन्द्रमा देखा है, वह सूचित करता है कि तुम्हारा पुत्र अपनी पवित्र किरणों के समुदाय से धर्म रूप अमृत की विशाल धारा के द्वारा जगत् को सिंचन करता हुआ इस संसार में भव्य जीव रूप कुमुदों के समूह को वृद्धिंगत करेगा और सर्व कलाओं का धारण करने वाला होगा ।।४६।। विकचितभव्यपयोजो नष्टाज्ञानान्धकारसन्दोहः । सुमहोऽभिकलितलोको रविरिव वा के वलालोकः ॥४७॥ सातवें स्वप्न में तुमने जो सूर्य देखा है, उसके समान तुम्हारा पुत्र भव्य जीव रूपी कमलों का विकासक, अज्ञान रूप अन्धकार के समुदाय का नाशक, अपने प्रताप से समस्त लोक में व्यापक और केवल ज्ञान रूप प्रकाश से समस्त जगत् को आलोकित करने वाला होगा ॥४७॥ कलशद्विक इव विमलो मङ्गलकारीह भव्यजीवानाम् । तृष्णातुराय वाऽमृतसिद्धिं श्रणतीति संसारे ॥४८॥ आठवें स्वप्न में तुमने जो जल-परिपूर्ण दो कलश देखे हैं, सो तुम्हारा पुत्र कलश-युगल के समान इस संसार में भव्य जीवों का मंगलकारी और तृष्णातुर जीवों के लिए अमृत रूप सिद्धि को देने वाला होगा ।।४८॥ के लिकलामाकलयन् कुर्यात्स हि सकल लोकमतुलतया । मुदितमथो मुदितात्मा मीनद्विक वन्महीवलये ॥४९।। नवें स्वप्न में तुमने जो जल में क्रीड़ा करती हुई दो मछलियां देखी हैं, सो उनके समान ही तुम्हारा पुत्र इस मही-मण्डल पर स्वयं प्रमुदित रहकर अतुल केलि-कलाओं को करता हुआ सकल लोक को प्रसन्न करेगा ॥४९॥ अष्टाधिकं सहस्त्रं सलक्षणानां यथैव कमलानाम् । द्रह इव दधान एवं सततं क्लमनाश को भविनाम् ॥५०॥ दशवें स्वप्न में तुमने जो अष्ट अधिक सहस्र कमलों से परिपूर्ण सरोवर देखा है, सो उसके समान ही तुम्हारा पुत्र उत्तम एक हजार आठ लक्षणों का धारक, एवम् निरन्तर भव्य जीवों के दुःख और पाप का नाशक होगा ॥५०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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