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सरररररररररररररररररररररररररर के द्वारा निर्दोष अर्थ को प्रकट करती है और तुम भी अपनी सुन्दर चेष्टा से निर्दोष तीर्थङ्कर देव के आगमन को प्रकट कर रही हो ॥३९॥ ...
लोकत्रयैक तिलको बालक उत्फुल्लनलिननयनेऽद्य । उदरे तवावतरितो हीङ्गितमिति सन्तनोतीदम् ॥४०॥
हे प्रफुल्लित कमलनयने ! तीनों लोकों का अद्वितीय तिलक ऐसा तीर्थङ्कर होने वाला बालक आज तुम्हारे गर्भ में अवतरित हुआ है । ऐसा संकेत यह स्वप्नावली दे रही है ॥४०॥
दानं द्विरद इवाखिल-दिशासु मुदितोऽथ मेदिनीचके । मुहुरपि मुञ्चन् विमलः समुन्नताऽऽत्माऽथ सोऽवतरेत् ॥४१॥
तुमने सर्व प्रथम जो ऐरावत हाथी देखा है उसके समान तुम्हारा पुत्र इस मही-मण्डल पर समस्त दिशाओं में दान (मद-जल) को वारंवार वितरण करने वाला, प्रमोद को प्राप्त एवम् निष्पाप महान् आत्मा होगा ॥४१॥
मूलगुणादिसमन्वित-रत्नत्रयपूर्णधर्मशक टन्तु मुक्ति पुरीमुपनेतुं धुरन्धरो वृषभवदयन्तु ॥४२॥
दूसरे स्वप्न में तुमने जो वृषभ (बैल) देखा है, उसके समान तुम्हारा पुत्र धर्म की धुरा को धारण करने वाला, तथा मूलगुण आदि से युक्त औ रत्न-त्रय से परिपूर्ण धर्म रूप शकट (गाड़ी) को मुक्तिपुरी पहुँचाने में समर्थ होगा ।।४२॥
दुरभिनिवेश-मदोद्धर-कुवादिनामेव दन्तिनामदयम् । मदमुद्धत्तुमदीनं दक्षः खलु के शरीत्थमयम् ॥४३॥
तीसरे स्वप्न में जो केसरी (सिंह) देखा है उसके समान वह पुत्र दुराग्रह रूप मद से उन्मत्त कुवादि-रूप हस्तियों के मद को निर्दयता से भेदन करने में दक्ष होगा ॥४३॥
कल्याणाभिषवः स्यात् सुमेरुशीर्षे ऽथ यस्य सोऽपि वरः । कमलात्मन इव विमलो गजैर्यथा नाक पतिभिररम् ॥४४॥
चौथे स्वप्न में तुमने हाथियों के द्वारा अभिषेक की जाती हुई लक्ष्मी देखी है वह इस बात की सूचक है कि तुम्हारे पुत्र का सुमेरु के शिखर पर इन्द्रों के द्वारा निर्मल जल से कल्याण रूप अभिषेक होगा ॥४४॥
सुयशःसुरभिसमुच्चय-विजृम्भिताशेषविष्ट पोऽयमितः । माल्यद्विक इव च भवेद्भव्यभ्रमरै रिहाभिमतः ॥४५॥
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