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लब्धीनां
जलनिधिरिव गम्भीरः प्रभवेदिह पालितस्थितिर्निवहः । तु नवानां के वलजानां निधीनां वा ॥५१॥ ग्यारहवें स्वप्न में जो तुमने समुद्र देखा है, सो उसके समान ही तुम्हारा यह पुत्र गम्भीर, लोकस्थिति का पालक, नव निधियों और केवल ज्ञान-जनित नव लब्धियों का धारक होगा ॥५१॥
सुपदं समुन्नतेः स्याच्छिवराज्यपदानुराग इह सततम् । चामीकर- चारुरुचिः सिंहासनवद्वरिष्ठः सः ॥५२॥ बारहवें स्वप्न में तुमने जो सुन्दर सिंहासन देखा है, उसके समान ही तुम्हारा यह होने वाला पुत्र सदा समुन्नति का सुपद (उत्तम स्थान ) होगा, शिव-राज्य के पद का अनुरागी होगा और सन्तप्त सुवर्ण के समान सर्वश्रेष्ठ उत्तम कांति का धारक होगा ॥५२॥
संसेव्यो
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सुरसार्थै: देवि
ह्यभीष्ट देशोपलब्धिहेतुरपि विमानवद्वै
हे
तव
सुपुत्रः
भवेत्पूतः
॥५३॥
तेरहवें स्वप्न में तुमने जो सुर-सेवित विमान देखा है, सो हे देवि ! उसके समान ही तुम्हारा यह सुपुत्र सुर-सार्थ ( देव- समूह ) से अथवा सुरस अर्थ वाले पुरुषों से संसेवित, अभीष्ट देश मोक्ष की प्राप्ति का हेतु और अति पवित्रात्मा होगा ॥५३॥
सततं सुगीततीर्थो निखिलमहीमण्डले महाविमल: 1
यशसा विश्रुत एवं धवलेन हि नागमन्दिरवत् ॥५४॥
चौदहवें स्वप्न में तुमने जो धवल वर्णमाला नाग मन्दिर देखा है, उसके समान ही तुम्हारा यह पुत्र समस्त मही मण्डल पर सदा ही सुगीत तीर्थ होगा, अर्थात् जिसके धर्म तीर्थ का गान चिरकाल तक इस संसार में होता रहेगा । वह पुत्र महा विमल एवं उज्ज्वल धवल यश से विश्रुत ( विख्यात ) होगा ॥५४॥
सुगुणैर मलैर्गुणितो रत्नैरिव रत्नराशिरिह रभ्यः
लोकानां
सः
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सकलानां
मनोऽनुकूलैरनन्तैः
॥५५॥
पन्द्रहवें स्वप्न में तुमने जो निर्मल रत्नों की राशि देखी है, उसके समान ही तुम्हारा पुत्र समस्त लोगों के मनोऽनुकूल आचरण करने वाला, अनन्त निर्मल गुण रूप रत्नों से परिपूर्ण एवं महा रमणीक होगा ॥५५॥
अपि दारुणोदितानां चिरजातानां च कर्मणां निवहम् ।
स
नयेद्भस्मीभावं
वह्नि समूहो
यथा
विशदः ॥५६॥
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