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________________ 42 अनारताक्रान्तघनान्धकारे भेदं निशा-वासरयोस्तथारे । भुर्तुर्युतिञ्चाप्ययुतिं वराकी तनोति सम्प्राप्य हि चक्रवाकी ॥२५॥ निरन्तर सघन मेघों के आच्छादित रहने से घनघोर अन्धकार वाले इस वर्षा काल में रात और दिन के भेद के नहीं प्रतीत होने पर यह वराकी (दीन) चक्रवाकी अपने भर्ता (चक्रवाक) के संयोग को और वियोग को प्राप्त हो कर ही लोगों को दिन और रात का भेद प्रकट कर रही है ॥२५॥ भावार्थ वर्षा के दिनों में सूर्य के न दिखने से चकवी ही लोगों को अपने पति वियोग से रात्रि का और पति-संयोग से दिन का बोध कराती है । - नवाङ्करैरङ्करिता धरा तु व्योम्नः सुकन्दत्वमभूदजातु । निरुच्यतेऽस्मिन् समये मयेह यत्किञ्चिदासीच्छ्रणु भो सुदेह ॥२६॥ वर्षा ऋतु में वसुन्धरा तो नव-दुर्वाङ्कुरों से व्याप्त हो गई और आकाश मेघों से चारों ओर व्याप्त हो गया । ऐसे समय में यहां पर जो कुछ हुआ, उसे मैं कहता हूँ, सो हे सुन्दर शरीर वाले मित्र, उसे सुनो ॥२६॥ स्वर्गादिहायातवतो जिनस्य सोपानसम्पत्तिमिवाभ्यपश्यत् । श्रीषोडशस्वप्नततिं रमा या सुखोपसुप्ता निशि पश्चिमायाम् ॥२७॥ एक दिन सुख से सोती हुई उस प्रियकारिणी रानी ने पिछली रात्रि में स्वर्ग से यहां आने वाले जिनदेव के उतरने के लिए रची गई सोपान - सम्पत्ति (सीढ़ियों की परम्परा वाली नि:श्रेणी) के समान सोलह स्वप्नों की सुन्दर परम्परा को देखा ॥२७॥ तत्कालं च सुनष्ट निद्रनयना सम्बोधिता मागधै र्देवीभिश्च नियोगमात्रमभितः कल्याणवाक्यस्तवै: विहायाऽऽर्हतां द्रव्याष्ट के नार्चनम् इष्टाचारपुरस्सरं प्रातः कर्म वरतनुस्तल्पं विधाय तत्कृ तवती Jain Education International - ॥२८॥ स्वप्नों को देखने के तत्काल बाद ही मागध जनों (चारणों) एवं कुमारिका देवियों के, सर्व ओर से कल्याणमयी वचन - स्तुति के नियोग मात्र को पाकर नींद के दूर हो जाने से जिसके नेत्र खुल गये हैं, ऐसी उस सुन्दर शरीर वाली प्रियकारिणी रानी ने जाग कर, इष्ट आचरणपूर्वक शय्या को छोड़कर और प्रातः कालीन क्रियाओं को करके अर्हन्त जिनेन्द्रों की अष्ट-द्रव्य से अर्चना (पूजा) की ॥२८॥ For Private & Personal Use Only । www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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