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________________ स ररररररररररर|24ररररररररररररररररर अन्यत्र कहीं पर उद्धतपना नहीं है । नीचता (गहराई) नाभि-मंडल में ही है, अन्यत्र नीचपना नहीं है। निपातपना शब्दों में ही है। अन्यत्र कहीं भी कोई किसी का निपात (घात) नहीं करता है । निग्रहपना संयमी जनों की इन्द्रियों में है, अन्यत्र कहीं भी कोई किसी का निग्रह नहीं करता है। चिन्ता अर्थात् वस्तु-स्वरूप का चिन्तवन वहां योगिजनों के समुदाय में है, अन्यत्र कहीं भी किसी के कोई चिन्ता नहीं है। सम्पीडन या सम्पीलन वहां केवल पौंडों के समूह में ही है । अर्थात् सांटे ही वहां कोल्हू में पेले जाते हैं, अन्यत्र कहां भी कोई किसी को पीड़ा नहीं पहुँचाता है ॥४८-४९॥ अभ्रं लिहाग्रशिखरावलिसङ्कलं च, मध्याह्न काल इह यद्वरणं समञ्चन् । प्रोत्तप्तकाञ्चनरु - चिर्भुवनेऽयमस्मिन्, कल्याणकुम्भ इव भाति सहस्त्ररश्मिः ॥५०॥ इस कुण्डनपुर नगर में गगनचुम्बी शिखरावली से व्याप्त कोट को मध्याह्न काल के समय प्राप्त हुआ, तपाये गये सुवर्ण की कांति वाला यह सहस्ररश्मि (सूर्य) सुवर्ण-कुम्भ के समान प्रतीत होता है ||५०॥ भावार्थ - मध्यान्ह काल में कोट के ऊपर आया हुआ सूर्य उसके सुवर्ण कलश-सा दिखाई देता श्रीमान् श्रेष्ठि चतुर्भुजः स सुषुवे भूरामले त्याह्वयं, वाणीभूषणवर्णिनं घृतवरी देवी च यं धीचयम् । श्रीवीराभ्युदयेऽमुना विरचिते काव्येऽधुना नामतः, द्वीपप्रान्तपुराभिवर्णनकरः सर्गो द्वितीयोऽप्यतः ॥२॥ इस प्रकार श्रीमान् सेठ चतुर्भुजजी और घृतवरी देवी से उत्पन्न हुए वाणीभूषण बाल-ब्रह्मचारी पं. भूरामल वर्तमान मुनि ज्ञानसागर द्वारा विरचित इस वीरोदय काव्य में जम्बूद्वीप, उसके क्षेत्र, देश और नगरादि का वर्णन करने वाला यह दूसरा सर्ग समाप्त हुआ ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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