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एतस्याखिलपत्तनेषु सततं साम्राज्यसम्पत्पतेः, रात्रौ गोपुरमध्यवर्तिसुलसच्चान्द्रः किरीटायते । नो चेत्सन्मणिबद्ध भूमिविसरे तारावतारच्छला, दभ्रादापतिता कुतः सुमनसां वृष्टिः सतीहोज्जवला ॥४७॥
समस्त नगरों में निरन्तर चक्रवर्ती की साम्राज्य-सम्पदा के स्वामी रूप इस कुण्डनपुर के गोपुर के ऊपर प्रकाशमान चन्द्रमा रात्रि में मुकुट की शोभा को धारण करता है। यदि ऐसा न माना जाय तो उत्तम मणियों से निबद्ध भवनों के आङ्गण में ताराओं के अवतार के बहाने आकाश से गिरती हुई फूलों की उज्ज्वल वर्षा कैसे सम्भव हो ॥४७॥
काठिन्यं कु चमण्डलेऽथ सुमुखे दोषाक रत्वं परं वक्र त्वं मृदुकुन्तलेषु कृशता वालावलग्नेष्वरम् । उर्वोरे व विलोमताऽप्यधरता दन्तच्छदे के वलं शंखत्वं निगले दशोश्चपलता नान्यत्र तेषां दलम् ॥४८॥ वामानां सुबलित्रये विषमता शैथिल्यमघावुता - प्यौद्धत्यं सुदृशां नितम्बवलये नाभ्यण्ड के नीचता । शब्देष्वेव निपातनाम यमिनामक्षेषु वा निग्रह - श्चिन्ता योगिकुलेषु पौण्ड्र निचये सम्पीडनं चाह ह ॥४९॥
उस नगर में कठिनता (कठोरता) केवल स्त्रियों के स्तन-मंडल में ही पाई जाती है, अन्यत्र कहीं भी कठोरता नहीं है । दोषाकरता सुमुखी स्त्रियों के मुख पर ही है, अर्थात् उनके मुख चन्द्र जैसे है, अन्यत्र कहीं भी दोषों का भण्डार नहीं है । वक्रपना स्त्रियों के सुन्दर बालों में ही है, क्योंकि वे श्यामवर्ण एवं धुंघराले हैं, अन्यत्र कहीं भी कुटिलता नहीं है ।
कृशता (क्षीणता) केवल स्त्रियों के कटि-प्रदेश में ही है, अन्यत्र कहीं भी किसी प्रकार की क्षीणता दृष्टिगोचर नहीं होती । विलोमता (रोम-रहितपना) स्त्रियों की जंगाओं में ही है, अन्यत्र कहीं भी प्रतिकूलता नहीं है। अधरता केवल ओठों में ही है, और किसी व्यक्ति में वहां नीचता नहीं है। शंखपना गले में ही है, अन्यत्र कहीं भी मूर्खपना नहीं है। चपलता आंखों में ही है, अन्यत्र कहीं भी चपलता नहीं है। विषमता स्त्रियों की त्रिबली में ही है, अन्यत्र कहीं विषमता नहीं है। शिथिलता वहां कि स्त्रियों के चरणों में ही है, अन्यत्र शिथिलता नहीं है। उद्धतपना केवल वहां की सुनयनाओं के नितम्ब-मंडल में ही है,
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