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________________ ज्ञानादय एवेहेष्टा इति । तस्माद् वीतरागो जिनेश्वरोर्हन्न व त्र्यात्मको वर्तते । न त्वन्योऽपि ॥ २० ॥ पद्यानुवाद - है एक मूत्ति फिर भी ये पर्याय से त्रिमूर्ति है , वे प्रात्म के ज्ञान दर्शन चरण गुरण से ही कथित हैं। जिससे वही ब्रह्मा विष्णु महेश रूप त्रिमूत्ति है , उपमा घटित ये सत्य ही सच्चे जिन महादेव हैं ।। २० ॥ शब्दार्थ एकत्तिः = मूत्तिरूप देह-व्यक्ति से एक है, और ब्रह्मा-विष्णु-महेश्वराः ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर इन नामों के । त्रयः =तीन । भागाः अंश-पर्याय है। च= तथा । ते वे तीनों अंश-भाग । एव ही। ज्ञान-चारित्रदर्शनात् =ज्ञान, चारित्र तथा दर्शन शब्दों से क्रमशः पुनरुक्ताः=फिर से अर्थात् शब्दान्तर से कहे गये हैं। भावार्थ - वीतराग जिनेश्वर ऐसे महादेव रूपी एक मूत्ति हैं, तथा उनके ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर इन नामों के तीन अंश-पर्याय हैं। वे तीनों अंश-पर्याय ही ज्ञान, चारित्र तथा दर्शन शब्दों से कहे गये हैं । अर्थात् ब्रह्मा-विष्णु-महेश, एवं ज्ञान-चारित्र-दर्शन ये शब्द क्रमश: पर्याय रूप में हैं। इस श्रीमहादेवस्तोत्रम् - ६१ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002760
Book TitleMahadev Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSushilmuni
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi
Publication Year1985
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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