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भावार्थ
यही महादेव जिनेश्वरत्व से भगवान सांसारिक अवस्था में कर्मरूप दोष से युक्त रहते हैं, इसलिये उस अवस्था में वे सकल कर्म कला से युक्त हैं। तथा सर्वोच्च चारित्र पालन आदि के प्रभाव से उक्त दोषों से रहित होने पर उन दोषों के हेतु औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस तथा कार्मरग-इन पांच शरीरों से मुक्त होकर परमपद-मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं, इसलिये उस अवस्था में निष्कल अर्थात् कर्म कला से रहित हैं। अर्थात् सादि अनंत स्थिति रूप मोक्ष के शाश्वत-अविनाशी सच्चे सुख को पाकर उनमें ही वीतराग जिनेश्वर शिव सदा मग्न-लीन हैं। वे कर्म की कला से सर्वथा रहित हैं ।। १६ ।।
_ [२०] अवतरणिका - ___ अन्येष्टदेवस्य “एकमूर्तिस्त्रयो भागा ब्रह्म-विष्णु-महेश्वराः" इति कथनरूपा प्रशस्तिः । सा जिनेश्वरदेवस्यवोपपद्यते इत्याह--- मूलपद्यम् - एकमूर्तिस्त्रयो भागा, ब्रह्मा-विष्णु-महेश्वराः। त एव च पुनरुक्ता, ज्ञान-चारित्र-दर्शनात् ॥
श्रीमहादेवस्तोत्रम्-५६
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