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सर्वोत्कृष्ट आत्मा है। तथा शान्तिः क्षमा । च =और । अहिंसा=दया। परा=कभी भङ्ग नहीं होने वाली सर्वोत्कृष्ट है । इसलिये सः वह प्रात्मा ही। परमात्मा=परम गुणवान् होने के कारण परमात्मा, उच्यते = कही जाती है। श्लोकार्थ
महादेव जिनेश्वर भगवान अविनाशी हैं तथा दर्शन एवं ज्ञान के सम्बन्ध से सर्वोत्कृष्ट प्रात्मा हैं। इनके सांसारिक अवस्था में भी क्षमा और अहिंसा कभी भंग नहीं होने वाली है और सर्वोत्कृष्ट है। इसलिये वह आत्मा ही परम गुणवान् परमात्मा कही जाती है । भावार्थ
यह महादेव जिनेश्वर भगवान तीर्थंकर अवस्था में सकल कर्म का क्षय हो जाने से नित्य, अनन्त दर्शन ज्ञान होने के कारण अव्यय-मुक्त, तथा जन्म-जरा-मरणादिक अपायों से रहित-अविनाशी-निर्गुण हैं। तथा सांसारिक अवस्था में क्षमा एवं अहिंसा इत्यादि गुणों के सर्वोत्कृष्ट तथा सर्व जन्तुविषयक होने के हेतु सगुण हैं। वह आत्मा ही परम-प्रकृष्ट गुणवान् आत्मा-परमात्मा कही जाती है । अर्थात् परम गुणों के होने से ही प्रात्मा को परमात्मा कहा जाता है ।। १७ ॥
श्रीमहादेवस्तोत्रम्-५२
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