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अमूर्त हैं, उसी प्रकार परमात्मा (सिद्ध स्वरूपी), बाह्यात्मा (केवल कर्मशरीरी) एवं अन्तरात्मा (देही) रूप में भी हैं। भावार्थ -
ये महादेव श्री जिनेश्वर भगवान मोक्ष में जाने से पहले देह-शरीर होने के कारण स्वभावतः आत्मा अमूर्त होने पर भी स्वात्मप्रदेशों के कर्मयुक्त होने से कथञ्चित् मूर्त हैं। तथा सम्पूर्ण सिद्धावस्था में शरीर रहित होने से अमूर्त हैं। तथा तीर्थंकर एवं सिद्धावस्था में परमात्मा, औदारिकादि देह रहित तथा सिद्धि रहित केवल कर्मशरीर से युक्त विग्रहगति काल में बाह्यात्मा एवं देही-शरीरी अवस्था में अन्तरात्मा भी हैं ।। १६ ।।
[ १७ ]
अवतरणिका -
परमात्मत्वमेवाह--- मूलपद्यम् - दर्शन-ज्ञानयोगेन, परमात्माऽयमव्ययः। परा क्षान्तिरहिंसा च, परमात्मा स उच्यते ॥
म-४
श्रीमहादेवस्तोत्रम्-४६
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