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महादेवस्यैव प्रशान्तं दर्शनं यस्येत्यादिना वरिणतं वैशिष्ट्यं सर्वोत्तमं वर्तते । नत्वन्यदेवस्यैवेति ।। १६ ॥
पद्यानुवाद - साकार निराकार भी वह मूर्ताऽमूर्तज रूप है , परमात्मा व बाह्यात्मा भी अन्तरात्मा स्वरूप है। ऐसे स्वरूपी विश्व में वीतराग महादेव हैं , न मिले उनकी जोड जग में विश्वजन से पूजित हैं ॥ १६ ॥ शब्दार्थ
सः ये महादेव श्रीजिनेश्वर भगवान । हि जिस कारण से । साकारः=आकार सहित-शरीरी हैं, इसलिये, मूर्तः=रूप,स्पर्शादि गुणवाले-सगुण हैं। च =ौर । तथैव =उसी तरह । अनाकारः = प्राकाररहित-अशरीरी (सिद्धावस्था में) हैं, इसलिये, अमूर्तः रूप स्पर्शादि गुणरहित हैं। च पुनः । तथैव = उस माफिक ही। परमात्मा सिद्धस्वरूपी। च तथा । बाह्यात्मा औदारिकादि देहरहित और सिद्धि रहित केवल कर्मशरीर सहित, एवं अन्तरात्मा_देही अवस्था में अन्तरात्मा भी हैं ।। १६ ।। श्लोकार्थ -
ये महादेव श्री जिनेश्वर भगवान साकार होने पर भी अनाकार-निराकार हैं, मूर्त याने मूत्तिमान् होने पर भी
श्रीमहादेवस्तोत्रम् -४८ For Private & Personal Use Only
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