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गीयते । यस्य महादेवस्य स्वयम्भूतः, वीतरागत्वमिति भावः ।। १४ ॥
पद्यानुवाद --
किया घात घातीकर्म का सर्वथा जिसने महा , लोकालोकप्रकाशक ज्ञान भी प्राप्त किया महा । अनन्तवीर्य-चारित्र भी स्वयमेव प्राप्त किये हैं , ऐसे स्वयम्भू विश्व में जिनेश्वर कहे जाते हैं ॥१४॥
शब्दार्थ___ यतः जिसके। लोकालोकप्रकाशकम् = लोक तथा अलोक का प्रकाशक-जानने वाला। ज्ञानं = केवलज्ञान । स्वयम्भूतं =अपने आप प्रगट हुप्रा है, तथा जिसके अनन्त वीर्य तथा अनंत चारित्र भी अपने आप प्राप्त हैं । सः वह ही । स्वयम्भूः स्वयम्भू । अभिधीयते = कहे जाते हैं। श्लोकार्थ -
जिनके सम्पूर्ण लोकालोक को प्रकाशित करने वाला केवलज्ञान, अनन्त वीर्य तथा अनन्त चारित्र अपने आप उत्पन्न हुए हैं, वे ही स्वयम्भू कहे जाते हैं । भावार्थ - जिस देव के लोक और अलोक दोनों का प्रकाशक
श्रीमहादेवस्तोत्रम्-४१
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