________________
दिप्रयोजकत्वाद् अत्यन्तलघुत्वसम्पादकत्वाद् महाबलवानतिमात्रश्च यो लोभः परनिजग्रहणेच्छा, सः । हतः परिहतः । सः तादृश महाक्रोधादिहननसाधनाऽसाधारणाऽलौकिकाऽऽत्मवीर्यसम्पन्नः योगी महादेवः =महादेवलक्षणोपेतः स महादेवः । उच्यते कथ्यते । नाऽन्यः ॥ ११ ।।
पद्यानुवाद - जिस देव ने विनाश किया सर्वथा महाक्रोध का , महामान-माया-मद का किया नाश महालोभ का । उसको ही कहते जग में सच्चे वह महादेव हैं , अन्य सभी देवों सरागी कषाय से भी समेत हैं ॥ ११ ॥ शब्दार्थ -
येन =जिसने । महाक्रोधः =महान् क्रोध । महामानः = महान् मान । महामाया=महान् माया । महामदः=महान् मद । तथा महालोभः =महान् लोभ, इन सभी का हतः= विनाश किया है अर्थात्-त्याग कर दिया है । सः वह । महादेवः=महादेव । उच्यते - कहा जाता है।
श्लोकार्थ
जिस देव ने महाक्रोध, महामान, महामाया, महामद तथा महालोभ इन सभी का विनाश किया है, त्याग कर दिया है, वे देव ही महादेव कहे जाते हैं।
श्रीमहादेवस्तोत्रम् -३२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org