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से रहित है, च =तथा, महावतोपदेशी=महाव्रतों के उपदेश देने वाले हैं, सः वह ही, महादेवः =महादेव, उच्यते कहे जाते हैं।
श्लोकार्थ
जिसने महान् कामदेव का विनाश किया है, तथा जो महान् भय से रहित है, और महाव्रतों के उपदेश करने वाले हैं, वे ही महादेव कहे जाते हैं ।
भावार्थ -
जिस देव ने अतिदुर्जय ऐसे कामदेव को नष्ट किया है, भोग तथा उपभोग की इच्छारूपी महा काम का त्याग किया है, अर्थात् जो सर्वथा निष्काम है, तथा महाभय से विवर्जित है अर्थात् निखिल कर्मों का क्षय करने से जो जन्म, जरा और मरण इत्यादिरूप भव के महान् भयों से रहित-अत्यन्त निर्भय हैं एवं अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह रूपी पाँच महान् व्रतों का सदुपदेश करने वाले हैं, वे देव ही महादेव कहे जाते हैं ॥ १० ॥
[११] अवतरणिका -
क्रोधादिशत्र जेतृत्वेन महादेवत्वमाह
श्रीमहादेवस्तोत्रम् -३०
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