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पद्यानुवाद - जगत में जिसने किया है विनाश ही महाराग का , तथा किया है विनाश भी स्वशक्ति से महाद्वष का। महामोह-कषाय का भी सर्वथा किया विनाश है , उनको ही कहते जग में वे ही जिन महादेव हैं ॥ ६ ॥
शब्दार्थ -
येन = जिसने, महारागः= महान् राग तथा महाद्वषः = महान् द्वेष, एवं महामोहः = महान् मोह तथा कषायः = कषाय (क्रोध, मान, माया और लोभ), इन सभी का हतः=विनाश किया है, सः ऐसा वह (देव) ही, महादेवः = महादेव, उच्यते = कहा जाता है। श्लोकार्थ - . ___जिस देव ने महाराग, महाद्वेष, महामोह और कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) इन सभी का विनाश किया है--अर्थात् त्याग किया है, ऐसा वह देव ही महादेव कहा जाता है।
भावार्थ -
जिस देव ने अपने आत्मा के साथ अनादि काल से रहे हुए अत्यन्त दृढ़ एवं दुर्जय ऐसे महान् राग, महान् द्वेष, महान् मोह तथा (क्रोध, मान, माया, लोभरूप) कषाय,
श्रीमहादेवस्तोत्रम् - २७
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