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यथार्थवास्तविको महादेव इति । लौकिकमताऽपेक्षया परमार्थतो वस्तुग्राहित्ववैशिष्टयाल्लोकोत्तरं श्रीजिनशासनं जैनधर्ममिति ध्वन्यते । जैनशासनसम्मत एवेति स एवाऽऽश्रयगीयो महादेवः । नाऽन्यतीर्थसम्मतो महादेवो महादेवगुणस्य महादेवपदार्थस्य चाऽभावान्न स इष्ट इति भावः ।। ६ ।।
पद्यानुवादलौकिक मत में महादेव शब्दमात्र ही माने है , किन्तु जिनशासनमहीं ये शब्दार्थ गुरण से युक्त है। वे तीन गुणवंत सुमहादेव सच्चा ही मानना , इनसे भिन्न जो विश्व में कल्पित देव ही जानना ॥ ६ ॥
शब्दार्थ -
लौकिकानां = लौकिक साधारण जनों (अन्यतीथिकों) के । मते-मत में । मतः माने गये । महादेवः =महादेव । शब्दमात्रः = नाममात्र ही हैं। किन्तु, जिनशासने जिनशासन-जैनधर्म में माने गये महादेव । शब्दतः = नाम से । अर्थतोऽपि = अर्थ से भी। गुरणतश्चैव = और गुण से भी, (महादेव हैं) ।। ६ ।। श्लोकार्थ
लौकिक मत में मात्र शब्द (नाम) से ही महादेव माने गये हैं, लेकिन जिनशासन (जैनधर्म) में शब्द से, गुण से
श्रीमहादेवस्तोत्रम्-१८
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