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नामधारण करने वाले ही हैं । श्लोकार्थ -
महाकष्ट से जीतने लायक महामल्लरूप राग और द्वेष को जिसने जीत लिया है, उसे ही मैं 'महादेव' मानता हूँ। दूसरे तो मात्र महादेव (ऐसे) नाम को धारण करने वाले ही हैं ।। १ ।। भावार्थ -
अत्यन्त कठिनाई से जो जीते जाते हैं अर्थात् जो दुस्साध्य हैं ऐसे रागद्वेषरूपी महान् मल्लों को जिस देव ने जीत लिया है, उस देव (वीतराग जिनेश्वर) को ही मैं महादेव मानता हूँ । अर्थात् अन्य देवों से अजेय रागद्वषादि को जीतने वाले को ही महादेव कहना योग्य है । अन्य देव तो मात्र नाम से ही महादेव हैं, इसलिये वे अर्थ तथा गुरण से वास्तविक रूप से महादेव नहीं है ।। ५ ।।
अवतरणिका -
ननु नामभावमहादेवयोः कतरस्तवेष्ट इति चेत् तत्राहमूलपद्यम् - शब्दमात्रोमात्रो महादेवो, लौकिकाना मतेमतः शब्दतो गुणतश्चैवार्थतोऽपि जिनशासने ॥
श्रीमहादेवस्तोत्रम्-१६
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