________________
भावार्थ
जिस देव के दर्शन शान्त हैं, भयकारक नहीं हैं तथा मंगलकारक एवं प्रशंसनीय हैं अर्थात् जिस देव के दर्शन करने से आत्मा को शान्ति मिलती है, भय नहीं होता है, इतना ही नहीं मंगल भी होता है, इसलिये ऐसे देव के दर्शन शुभ और इष्ट हैं । अतः ऐसे देव ही शिव कहे जाते हैं । जो निग्रहाऽनुग्रह से रहित हैं वे ही सच्चे शिव हैं । बाकी हिंसादिक से जो युक्त हैं वे तो नाम मात्र से ही शिव कहे जा सकते हैं, वास्तविक नहीं ॥ (१)
[ २ ]
अवतरणिका -
निरुक्तिपूर्वकं तमेव शिवं महेश्वरत्वेन स्तौति-
मूल पद्यम् -
महच्वादीश्वरत्वाच्च, यो महेश्वरतां गतः । राग-द्वेषविनिर्मुक्तं, वन्देऽहं तं महेश्वरम् ॥
अन्वयः
'यः महत्त्वात् च ईश्वरत्वात्, महेश्वरतां गतः, रागद्वेषविनिर्मुक्तम् तं महेश्वरम् अहं वन्दे' इत्यन्वयः ।
Candel
Jain Education International
श्रीमहादेवस्तोत्रम् —६
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org