________________
"पञ्चमं लघु सर्वत्र, सप्तमं द्वि-चतुर्थयोः । षष्ठं गुरुविजानीयात्, एतद् पद्यस्य लक्षणम् ॥"
पद्यानुवाद -
[हरिगीत छन्द ] जिसका ही दर्शन अनुपम प्रशान्तरस से पूर्ण है , जग के सभी जीवों को भी वे अभयप्रद दर्शन हैं। मंगलकारक और शुभ प्रशंसनीय भी इष्ट है , इस हेतु से वे विश्व में 'शिव' सदा कहे जाते हैं ॥१॥
शब्दार्थ -
यस्य जिस देव का । दर्शनम् =देखना। प्रशान्तम् = प्रकृष्ट शान्त । सर्वभूताऽभयप्रदम् =सर्व जीवों को अभय देने वाला। मङ्गल्यम् =मङ गलकारक अर्थात् मंगलस्वरूप । तेन दर्शन का प्रशान्त इत्यादि होने के हेतु । शिवः शुभ, शिव ऐसे । विभाव्यते कहे जाते हैं ।। १ ।। श्लोकार्थ
जिनका दर्शन शान्त है, सर्व जीवों को अभयदेनेवाला है, मंगलकारक और प्रशंसनीय है, उससे वे शिव कहे जाते हैं अर्थात् वे ही सच्चे शिव हैं। महादेव भी वे ही हैं। सच्चे वीतराग विभु जिनेश्वरदेव भी वे ही हैं।
श्रीमहादेवस्तोत्रम्-५ For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org