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कायम एकासरणा, कायम चौविहार तथा गरम पानी सेवन; संवत् २०१५ में कोलेरा की बीमारी में तथा स. २०२४ में हार्टअटेक की बीमारी में भी चौविहार तथा गरम पानी का सेवन किया। तप से कर्मनिर्जरा होती है। आपके तप-पालन की दृढ़ता प्रशंसनीय है। आपने श्रीवर्धमान तप की अोली तथा श्री उपधान तप की आराधना प. पू. प्राचार्यदेव श्री भुवन भानुसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में की।
तीर्थयात्रा--मनुष्य जन्म के आठ विशिष्ट फलों में तीर्थयात्रा का स्पष्ट निर्देश हैः
पूज्यपूजा दयादानं, तीर्थयात्रा जपस्तपः ।
श्रुतं परोपकारश्च, मयंजन्मफलाष्टकम् ॥ [पूज्यों की पूजा, दया, दान, तीर्थयात्रा, जप, तप, श्रुताराधना एवं परोपकार-मनुष्य जन्म के ये आठ फल हैं। ] ..
तीर्थ में परिभ्रमण करने वाले मनुष्य संसार में आवागमन नहीं करते--
तीर्थेषु विभ्रमणतो न भवे भ्रमन्ति । तीर्थयात्रा में धन खर्च करने वाले मनुष्य स्थिर सम्पत्तिवान होते हैं
द्रव्यव्ययादिह नराः स्थिरसम्पदः स्युः। संघवी देवीचन्दजी ने श्री शत्रुञ्जय, गिरनारजी, आबूजी, सम्मेदशिखरजी आदि तीर्थों की अनेक बार यात्रा का है। श्री शिखर जी तथा पावापुरीजी की २५ से भी अधिक यात्रायें करके विपुल पुण्योपार्जन किया है । श्री पावापुरी में निर्वाण कल्याणक (दीपावलो) के दिन इनकी ओर से पूजा, अंगरचना, प्रभावना सं.२०१३ से प्रतिवर्ष
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