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________________ संघवी श्रीमान् देवीचन्दजी श्रीचन्दजी का संक्षिप्त जीवन-परिचय आपका जन्म वि. सं. १६६३ भाद्रपद कृष्णा ३, मंगलवार को पादरली (राजस्थान) में प्राग्वट कुल के भारणसका परमार (गोडीया) गोत्र में हुआ। आपके पिता शा श्रीचंदजी रतनाजी एवं माता सौ. कुसुम बाई धार्मिक संस्कार से विभूषित थे। आपकी धर्मपत्नी हुलासी बाई का जन्म वि. सं. १९६५ में तखतगढ़ में हुआ। हुलासी बाई के पिताजी शा भकाजी उर्फ प्रागचंदजी एवं माताजी केशरबाई अतीव धर्मनिष्ठ थे ।। संघवी देवीचन्दजी सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में सदा अग्रणी रहते हैं। इनकी धर्मपत्नी हुलासी बाई का धार्मिक अभ्यास दो प्रतिकमण तक हुआ है । इन्होंने ज्ञान पंचमी, मेरु तेरस, वीसस्थानक तप, तीन उपधान की आराधना, पौषदशमी, नवपद अोलीजी आदि की तपश्चर्या हर्षोल्लास से की है। आपको तपस्या अनुमोदनीय है। संघवी देवीचन्दजी ने पंचप्रतिक्रमरण, नवस्मरण, जीवविचार, लधुसंग्रहणी आदि का अभ्यास किया है। जीवन में धर्म के प्रभाव से मानवीय गुणों का विकास होता है । धार्मिक अभ्यास माता के दूध के समान प्रात्मा का पोषण करता है, व्यावहारिक ज्ञान सांसारिक कार्यकलाप का सुचारु रूप से संचालन करता है। धर्ममय व्यवहार पुण्यबन्ध का कारण बनता है। श्रीमान् संघवी देवीचन्दजी ने तपश्चर्या के अन्तर्गत ज्ञानपंचमी, अट्ठाई, नवपदजी अोली, संवत् १९६४ से संवत् २००५ तक Jain Education International - For Private रPersonal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002760
Book TitleMahadev Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSushilmuni
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi
Publication Year1985
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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