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'र' ब्रह्मा तथा 'ह' महेश-शंकर स्वरूप बताया गया है । यही 'अ' प्रकाररूप वर्णमातृका पाठ में प्रथमाक्षर है तथा अर्हन् पद के भी प्रादि में है अर्थात् अर्हन् पद का आद्य अक्षर प्रकार, तीर्थंकर परमात्मा से उपदिष्ट धर्म ही आदि धर्म है तथा वे ही आदि मुक्त एवं आदि केवलज्ञानी हैं। इसलिये ही अर्हन पद में सर्व प्रथम अकाररूप अक्षर कहा जाता है ।। ४० ।।
[ ४१ ]
अवतरणिका -
अर्हत्पदघटकं रेफ निरूपयन्नाह
मूलपद्यम् - सपिद्रव्यस्वरूपं वा. हष्ट्वा ज्ञानेन चक्षुषा। हष्ट लोकमलोकं वा, रकारस्तेन प्रोच्यते ॥
अन्वयः -
'ज्ञानेन चक्षुषा रूपिद्रव्यस्वरूपं दृष्ट्वा वा लोक प्रलोकं वा दृष्टम्, तेन रकारः प्रोच्यते' इत्यन्वयः ।
मनोहरा टीका -
ज्ञानेन = मतिश्रु तावध्यात्मकेन । चक्षुषा=नयनेन ज्ञान
श्रीमहादेवस्तोत्रम् - १२०
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