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सारांश यह है कि---"अह" मन्त्र वीतराग विभु श्री अरिहन्त-जिनेश्वर-तीथंकर परमात्मा का वाचक है। इसलिये “प्रह" शब्द में ब्रह्मा-विष्णु-महेश स्वरूप भी माना गया है। गुणों से जिनेश्वर के ब्रह्मा आदि स्वरूप का प्रतिपादन पहले किया ही है । ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि को मानने वाले अन्य सभी जीवों को भी यही "अह" शब्द नमस्करणीय, वन्दनीय, पूजनीय, चिन्तनीय, मननीय एवं ध्यान करने योग्य अवश्यमेव है ।। ३६ ।।
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अवतरणिका -
अर्हत्पदार्थगौरवं प्रकटयन्नाह--- मूलपद्यम् - अकार आदिधर्मस्य, मोक्षस्य च प्रदेशकः। स्वरूपं परमज्ञानमकारस्तेन प्रोच्यते॥
अन्वयः - _ 'प्रकारः प्रादिधर्मस्य, च मोक्षस्य प्रदेशकः, स्वरूपं परमज्ञानं, तेन प्रकारः प्रोच्यते' इत्यन्वयः । मनोहरा टीका -
अकारः = 'अर्हन्' पदस्यादिमाक्षरः प्रथमोऽकाररूपो
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