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कहे गये हैं। तस्य = उस हकाररूप वर्ण के । अन्ते = अन्त में, अर्थात् ऊपर के विभाग में रहा हुआ अर्धचन्द्रबिन्दु । परमं = सर्वोच्च । पदम् = पद अर्थात् सिद्धशिला के प्राकार का होने से परमपद का प्रतीक (अनुस्वार) है।
श्लोकार्थ
__ "प्रह" (यह) मन्त्र अपने आदि में स्थित प्रकार रूप वर्ण से विष्णुस्वरूप है, रेफरूप वर्ण में ब्रह्मा रहे हुए हैं, और हकाररूप वर्ण से हर (महेश्वर) कहे गये हैं। उस हकाररूप वर्ण के अन्त में जो अनुस्वार (अर्धचन्द्रबिन्दु) है वह परमपद अर्थात् मोक्षपद है ।
भावार्थ -
"प्रह" (यह) मन्त्र जैनदर्शन का महान मंत्र है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा परमपद स्वरूप का निर्देश है। अह की आदि में स्थित अकाररूप वर्ण विष्णुस्वरूप है अर्थात् विष्णु का प्रतीक है, अर्ह का रेफरूप वर्ण ब्रह्मा शब्द में रेफ होने से ब्रह्मा का प्रतीक है, अर्ह का हकाररूप वर्ण हर आदि महेश्वरवाचक शब्दों में हकार होने से महेश्वर का प्रतीक है। अर्ह के अन्त में अर्थात् ऊपर स्थित अर्धचन्द्रबिन्दु (अनुस्वार) सिद्धशिला के आकार का होने से परमपद का अर्थात् मुक्ति-मोक्ष का प्रतीक है।
श्रीमहादेवस्तोत्रम्-११६
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