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________________ (३) निःसङ्गता यानी वोतरागपन-वातरागता । विश्व के किसी भी विषय में पदार्थ में राग नहीं होना, वह निःसङ्गता-वीतरागता ही पवन-वायु नाम का गुण है । वह मिट्टी या पानी के जैसे किसी भी वस्तु-पदार्थ में आसक्त नहीं होता है। विभु वीतराग देव में यही वीतरागता पवन-वायु गुण वास्तविक रूप में सही है । (४) हताश-हताशन यानी अग्नि-वह्नि । वह समस्त वस्तु-पदार्थों को जला देता है, इस तरह योग (शुक्लध्यानादि) भी समस्त कर्मों का विनाश करता है। इसलिये योग अग्नि नाम का गुण कहा गया है। विभु वीतराग देव में यह अग्नि गुण भी वास्तविक रूप में सही है। ।। ३५ ।। [ ३६ ] अवतरणिका - क्षित्याद्यन्तर्गतो यजमानादिगुणान् निरूपयन्नाह--- मूलपद्यम - यजमानो भवेदात्मा, तपोदानदयादिभिः। अलेपकत्वादाकाश-सङ्काशः सोऽभिधीयते ॥ श्रीमहादेवस्तोत्रम्-१०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002760
Book TitleMahadev Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSushilmuni
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi
Publication Year1985
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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