________________
नाम का गुण । उच्यते कहा जाता है । श्लोकार्थ -
क्षमा क्षिति नाम का गुण कहलाता है, प्रसन्नता (निर्मलता) जल नाम का गुण कहलाता है, निःसङ्गता (वीतरागता) पवन नाम का गुण कहलाता है, तथा योग (शुक्लध्यान, समाधि) अग्नि नाम का गुण कहलाता है ।
भावार्थ
[विभु वीतराग देव के क्षित्यादि पाठ गुणों का स्वरूप बताते हुए कहा है कि-]
(१) क्षिति यानी पृथिवी 'सर्वसहा' कही जाती है । विश्व में वह सब कुछ सहन करती है। इसलिये शक्तिसामर्थ्य रहने पर भी अन्य किसी के अपराध का सहन रूप क्षमा ही क्षिति-पृथिवी नाम का गुरण कहा गया है। विभु वीतराग देव में यह क्षिति गुण वास्तविक रूप में सही है ।
(२) जल यानी पानी, वह वास्तविक रूप में निर्मल है तथा दूसरे को भी निर्मल करता है। इसलिये कर्म के सर्वथा क्षय हो जाने पर आत्मा की प्रसन्नता यानी निर्मलता ही जल-पानी नाम का गुण है। विभु वीतराग देव में यह जल गुण वास्तविक रूप में सही है ।
श्रीमहादेवस्तोत्रम्-१०३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |