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________________ तीनों की एक मूत्ति कैसे हो सकती है। भावार्थ - पुराण के अनुसार ब्रह्माजी अपने हस्त में सदा कमल धारण करने वाले, महेश्वर यानी शंकर अपनी हाथ में सदा त्रिशूल धारण करने वाले तथा विष्णु याने कृष्ण अपने कर में सदा सुदर्शनचक्र धारण करने वाले कहे गये हैं। तो इन तीनों की एक मूत्ति कैसे हो सकती है ? पद्महस्त कहने से केवल ब्रह्माजी का बोध होता है शूलपाणि कहने से केवल महेश्वर-शंकर का बोध होता है, और चक्रपाणि कहने से केवल विष्ण -कृष्ण का बोध होता है। इस तरह विभिन्न अभिन्न का बोध कैसे कराते है ? अतः एक मूत्ति कैसे होगी? यदि एक मूत्ति हो तो ब्रह्माजी को चक्रपाणि, महेश्वर-शंकर को पद्महस्त और विष्णु-कृष्ण को शूलपाणि कहा जा सकता हैं । किन्तु ऐसा व्यवहार नहीं हो सकता है । इसलिये इन तीनों देवों की एक मत्ति तीन भाग नहीं है । इसलिये कहा है कि 'एकमूर्तिः कथं भवेत् ? अर्थात् एक मूत्ति कैसे हो सकती है ? ।। ३१ ।। [ ३२ ] अवतरणिका - __ अथ जन्मकालभेदेनाऽपि मूत्तिभेदमाह श्रीमहादेवस्तोत्रम्-६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002760
Book TitleMahadev Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSushilmuni
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi
Publication Year1985
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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