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________________ स्यात् ?, काक्वा नैव स्यादित्यर्थः । यद्यपि चतुर्भुजत्वात् प्रत्येकं भुजायां वस्तुभेदो नाऽयुक्तः, तथापि विवेकेन ब्रह्मादिपरिज्ञानं पद्मादिद्वारा नैव स्यात् । तदनुरोधात् पद्मादीनि भिन्नमूत्तिरेव विशेषणानीति नैकमूर्त्तिरिति ॥ ३१ ॥ पद्यानुवाद - कमलधारक प्रख्यात है 1 ब्रह्मा सदा निज हस्त में तथा महेश्वर निज कर में त्रिशूलधारक ख्यात है । विख्यात विष्णु निज कर में सुदर्शन चक्रधारक है, इन तीनों की ही एक मूर्ति कैसे हो सकती है ।। ३१ ।। शब्दार्थ - ब्रह्मा = ब्रह्मा नाम के देव । पद्महस्तः = कमल हाथ में धारण करने वाले । भवेत् = हैं । महेश्वरः = महेश्वर नाम के देव | शूलपाणिः = त्रिशूल धारण करने वाले हैं । तथा, विष्ण - विष्णु नाम के देव । चक्रपारिणः = सुदर्शनचक्र धारण करने वाले । भवेत् = हैं। तो, एकमूतिः = एकमूर्ति | कथं = कैसे | भवेत् ? = हो सकते हैं ? श्लोकार्थ - ब्रह्मा अपने हाथ में कमल धारण करने वाले हैं । महेश्वर अपने हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले हैं तथा विष्णु अपने हाथ में सुदर्शनचक्र धारण करने वाले हैं । तो, इन Jain Education International श्री महादेवस्तोत्रम् ८६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002760
Book TitleMahadev Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSushilmuni
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi
Publication Year1985
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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