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श्लोकार्थ -
ब्रह्मा अक्षसूत्र (माला) को धारण करने वाले हैं, दूसरे (महेश्वर) त्रिशूल को धारण करने वाले हैं तथा तीसरे (विष्ण) शंख-चक्र को धारण करने वाले हैं । ऐसी स्थिति में एक मुत्ति कैसे हो सकती है। भावार्थ -
पुराणों में ब्रह्मा, महेश्वर और विष्ण के लांछन-चिह्न भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रतिपादित किये हैं। जैसे ब्रह्मा का लांछन-चिह्न प्रक्षसूत्र है, अर्थात् ब्रह्माजी अक्षसूत्र (माला) को धारण करने वाले हैं। महेश्वर का लांछन-चिह्न त्रिशूल है, अर्थात् महेश्वर (महेश-शंकर) त्रिशूल को धारण करने वाले हैं। तथा विष्ण का लांछन-चिह्न शंख-चक्र है, अर्थात् विष्ण शंख और चक्र को धारण करने वाले हैं। इसलिये लांछन-चिह्न भिन्न-भिन्न होने से उक्त तीनों देवों की एक मूत्ति नहीं हो सकती है। ऐसी स्थिति में कहा है कि 'एक मूर्तिः कथं भवेत् ?' एक मूत्ति कैसे हो सके ? अर्थात् न हो सके ।। २७ ॥
[२८] अवतरणिका -
चिह्नभेदेन भिन्नमूत्तित्वं समर्थ्य मुखाद्यङ्गवलक्षण्येनाऽपि तदुपपादयन्नाह
श्रीमहादेवस्तोत्रम्-८०
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