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________________ चकाङ्कः शङ्खश्चक्रं चाऽङ्को चिह्न यस्य सः शङ्खचक्राङ्कः शङ्खचक्राञ्च चिह्नितः देवः । एवं प्रत्येकमङ्कभेदे सति, एकमूत्तिः कथं भवेत ? एकत्तिः केन प्रकारेण स्यात् ? काक्वा नैव स्यादित्यर्थः । नैकस्या मूर्तेविभिन्न चिह्न प्रख्यातमिति चिह्नभेदाद् विभिन्न व मूत्तिर्ब्रह्मादिनां, एकस्यैवाऽनेकचिह्नत्वे जगज्जनानां परिचयव्यामोहापत्तश्चेति ॥ २७ ॥ पद्यानुवाद -- अक्षसूत्र को ब्रह्माजी धारण करने वाले हैं , तथा महेश त्रिशूल को धारण करने वाले हैं। विष्ण भी शंख और चक्र धारण करने वाले हैं, इन तीनों को एक मूत्ति कैसे ही हो सकती है ॥२७॥ शब्दार्थ - ., ब्रह्मा ब्रह्मा नाम के देव । अक्षसूत्रो = अक्षसूत्र (माला) को धारण करने वाले । .. भवेत् =हैं । द्वितीयः = दूसरे (महेश्वर नाम के देव)। शूलधारकः – त्रिशूल को धारण करने वाले हैं, तथा तृतीयः तीसरे (विष्ण नाम के देव) शङ्खचकाङ्कः = शंख और चक्र को धारण करने वाले हैं । तो, एकत्तिः एकत्ति । कथं = कैसे । भवेत् ? =हो सकती है ? श्रीमहादेवस्तोत्रम्-७९ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002760
Book TitleMahadev Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSushilmuni
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi
Publication Year1985
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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