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________________ ३५-३६ ] चतुर्दश सर्गः ६८३ याच्ओवात्सुमग्रहाय सहजालिङ्गनसुखाभ्युपायः । उवास बोभ्या द्रुतं सचेता दशनांशुविजितशशिरुचिमेताम् ॥३५।। टीका-एषोवञ्चत्सुमग्रहायोपरिवेशस्थपुष्पग्रहणाय यासो सहजा याच्या सा किलालिङ्गनसुखस्याभ्युपाय इति मत्वा सचेता विचारशीलो नर एतां वशनानां वन्तानामंशुभिः किरणेंविजिता पराजिता शशिनश्चन्द्रस्य रुचिः प्रभा यया तां बोभ्या बाहुभ्यामदासोत्यापितवानेव ॥३५॥ रमणं धृत्वा कापि करेण स्कन्धे रामा समादरेण । उवग्रपुष्पोच्चयोपलम्भे पुलकितेव सा पुनर्जजम्भे ॥३६॥ टीका-कापि रामा समावरेण प्रेम्णा करेण स्वकीयेन रमणं पति स्कन्धेऽक्षोपरिप्रवेशे धृत्वा रमणस्पर्शनेन पुलकितेव सोदप्रपुष्पोच्चयस्योपलम्भे जम्भे समर्था बभूव ॥३६॥ पवनप्रचारनिपतत्केशाऽपाकरणमिषाद्विशुद्धवेशाम् । उदग्रशुम्बस्थपाणिलेशां चुचुम्ब वक्त्रे पतिविशेषात् ।।३७॥ टोका-कस्या अपि पतिः स्वामी तां विशुद्धो वेशः समाचारो यस्यास्तामुग्ने सम्न्चंगतशुम्बेऽग्रकाण्डे तिष्ठति लगति पाणिलेशो हस्ताग्रभागो यस्यास्तां पवनस्य प्रचारेण निपतन्ति ये कशास्तेषामपाकरणं निवारणं तस्य मिषान् वक्त्र मुखे विशेषाच्चुचुम्ब तस्य न कापि वाधा प्रोभूत् ॥३७॥ अर्थ---ऊपर लगे हुए फूलको तोड़नेके लिये किसी स्त्रीने पतिसे सहज याचना की । विचारशील पतिने सोचा कि यह आलिङ्गन सम्बन्धी सुख प्राप्त करनेका अच्छा उपाय है, ऐसा विचार कर उसने दाँतोंकी किरणोंसे चन्द्रकान्तिको जीतनेवाली स्त्रीको दोनों भुजाओंसे ऊपर उठा दिया (तथा कहा कि लो तुम्हीं तोड़ लो) ॥३५॥ अर्थ-कोई स्त्री ऊँचाई पर लगे फल तोडना चाहती थी इसके लिये उसने बड़े आदरसे पतिके कन्धेपर हाथ रक्खा; पतिके स्पर्शसे वह रोमाञ्चित हो गयो, रोमाञ्चित होनेसे वह कुछ लम्बी हो गयी अतः ऊँचाई पर लगे फूलोंको प्राप्त करने में समर्थ हो गयी ॥३६|| ___ अर्थ-विशुद्ध-उज्ज्वल वेषवाली कोई स्त्री दोनों हाथोंसे ऊपरकी शाखा पकड़े हुए थी। इधर वायुके वेगसे खुलकर उसके केश मुखपर आ गये उन्हें दूर करनेके बहाने पतिने उसके मुखका बार-बार स्पर्श किया। स्त्रीकी ओरसे कोई बाधा नहीं हुई ॥३७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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