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१९-२० ]
चतुर्भश सर्गः ____टीका-तदा स नेता आह तावत्-अहो कमलनालकुलबाहो ! मृणालतुल्यकोमलभुजे ! तव जम्भानां दन्तानां जम्भित परिवर्द्धमानं कोमलभावं सौन्दर्यमभिवीक्ष्य तावदाश्चर्यतो नु किल दाडिमस्य करकफलस्य हृद् अन्तो भिन्न विदीर्णमिति । 'जम्भो दन्तेऽपि जम्भीर' इति विश्वलोचने ॥१८॥ करं करजकिरणैः कुसुममति कांचिदप्यपकुसुमे संवधतीम् । दृष्ट्वा युवति सरवीजनेन स्मितपुष्पायपितानि तेन ॥१९॥
टीका--काचिदपि चापकुसुमे पुष्पैविहीनेऽपि देशे करजानां स्वकोयनखानां किरणैः कृत्वा कुसुमानां पुष्पाणां मतिर्बुद्धि यत्र यस्य वा तं कर स्वहस्तं संवधती क्षिपन्ती युवति नवयौवनां दृष्ट्वा तेन तत्रोपस्थितेन सखोजनेन स्मितानि मन्दहास्यरूपाणि पुष्पाणि अपितानि दनानि तस्यै ॥१९॥ यमिति विटपमालिलिङ्ग रामा कुसुमेषुयुवतितोऽप्यतिरामा । तेनाऽऽमोदपूर्णताऽदशिभूत्वा सहजेन कुसुमवर्षों ॥२०॥
टोला--अथवा कुसुमेषोः कामस्य युवतिर्या रतिस्ततोऽप्यभिरामाऽधिकसुन्दरी रामा यमिति कमपि विटपं लतास्तम्बमालिलिङ्ग तेनैव सहजेन स्वभावेन कुसुमवर्षी भूत्वाऽमोदपूर्णता सौरभसमर्थताऽदर्शीत्यनेन पुण्यप्रतीतिः ॥२०॥
अर्थ-आलिङ्गनके समय पति ने कहा-अहो मृणाल के समान कोमल भुजाओं वाली प्रिये ! तुम्हारे दाँतोंके बढ़ते हुए सौन्दर्यको देख आश्चर्यसे अनारका हृदय-अन्तःकरण विदीर्ण हो गया है ।।१८।।
अर्थ-कोई एक युवति अपने नखोंकी किरणोंसे पुष्प रहित प्रदेश पर भी पुष्प समझ अपना हाथ डाल रही थी अर्थात् नखोंकी किरणोंको ही पुष्प समझ तोड़नेके लिये बार-बार हाथ डाल रही थी उसे देख उपस्थित सखीजनों ने उसके लिये मन्दहास्यरूपी पुष्प समर्पित कर दिये। तात्पर्य यह है कि सखीजनोंने उसके भोलेपन पर हँस दिया ।।१९!।
अर्थ-रतिसे भी अधिक सुन्दर स्त्रीने जिस किसी विटप-लतास्तम्ब का आलिङ्गन किया-पुष्प तोड़नेके लिये जिस पर अपने हाथ रक्खे उसीने सहजभावसे पुष्पवर्षी होकर हर्षकी पूर्णता दिखलायी। भाव यह है कि जिस प्रकार सुन्दर स्त्रीका आलिङ्गन पाकर विटप-शृङ्गार रसमें रचा-पचा विट पुरुष हर्ष प्रकट करता है उसी प्रकार लतास्तम्बने भी स्त्रीका आलि ङ्गन पाकर पुष्प वृष्टि द्वारा अपना हर्ष प्रकट किया था ॥२०॥
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