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________________ १२२६ जयोदय-महाकाव्यम् [१९-२१ त्पादकानां वनेवराणां स्फीत्कारोऽङ्गस्फालनरूपश्चीत्कारश्च शम्बस्तयोहयोः परं तल्लीनं तन्मयमतो हृत्कम्पकरं चिते कम्पोत्पादकमतश्च धोरतयाधिकृत्यं धैर्यपूर्वकमेवाधिकरगीयं नृत्यम् ॥१८॥ श्रवःत्रुचाऽनन्यरुचा पुनीता सुषेव पीता वसुधेश ! गोता। मितामरीभिर्मपुराधरीभिर्या वागयावा सबने परीभिः ॥१९॥ श्रवःनुचेत्यावि-हे वसुषेश ! गृहे सा वाग् वाणी श्रवः चा कर्णरूपचषकेण पोता समास्वादिता भवति या सुधेव पुनीता मनःप्रिया यतो मिता तुलनां नीता अमर्यो याभिस्ताभिर्मधुरमपरं च यासां ताभिर्मधुराषरीभिः परमसुन्दरीभिर्गाता सम्यगुफ्ताऽत एवायावाया निर्दोषा साऽनन्यरचा अन्यत्रासम्भवत्या रुचा रुच्या पीताऽस्वादिता भवति । रूपकेणोपमया च सहितोऽनुप्रासोऽलंकारः ॥१९॥ कृतान्तवृत्तान्तसुभैरवा वागिहर्षये मर्मनिकर्मभावा । द्रुतं नु तं धारय मारयेति विलुब्धकानामुपलग्बहेतिः ॥२०॥ कृतान्तेत्यादि-इह पुनः ऋषये संयताय तु विलुब्धकानां व्याधानामुपलब्धा समुत्थापिता हेतिरसिपुत्रिका यत्र सा तमेनं द्रुतमेव धारय मारयेति च मर्मणि विषमस्थाने निकर्मण उत्कृन्तनस्य भावो यया भवति सा कृतान्तस्य यमराजस्य वृत्तान्तवत् सुभैरवा भयंकरा वाग् वाणी स्यादित्यनुप्रासोऽलंकारोऽत्र । नु वितर्के ॥२०॥ विरुद्धवृत्तौ रुषमेति लोकश्छन्दोऽनुगे तर्षनिदर्शनौकः । रोषो न तोषो जगवेकपोष ऋषेर्भवत्येव भवेऽपदोषः ॥२१॥ भयंकर वनेचर जीवोंका वह नृत्य कहाँ ? जो स्फीत्कार-अङ्गविक्षेप तथा चीत्कार-भयंकर गर्जनसे तन्मय है, हृदयको कम्पित कर देने वाला है और धैर्यपूर्वक देखने योग्य है ॥१८॥ आर्थ-हे राजन् ! आपने घरमें कर्णरूपी पानपात्रके द्वारा अनन्यरुचिपूर्वक उस वाणीका 'पान किया था, जो सुधाके समान पवित्र थी तथा देवाङ्गनाओं की तुलना करनेवाली मधुर ओठोंसे युक्त परियों-अत्यन्त सुन्दर स्त्रियों द्वारा गायी गई थी ॥१९॥ . अर्थ-और यहाँ शिकारियोंकी उस वाणीको सुनो, जो यमराजके वृत्तान्तके समान अत्यन्त भयंकर है, ऋषियोंको लक्ष्य कर कही गयी है, मर्मभेदी है तथा उसे शीघ्र पकड़ो और मारो यह कह कर जिसमें छुरी निकाली गयी है ॥२०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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