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________________ जयोदय-महाकाव्यम् [४७-४९ कमनः शमनन्दिनामुनाऽपहतास्त्रस्त्वनुकम्पयाऽधुना। समिताश्च मिता: सुमश्रियामृतवस्तद्धितवस्तुदित्सया ॥४७॥ कमन इत्यादि-कमनः कामदेवोऽमुना समवसरणस्थेन शमे नन्दिरानन्दपरिणामो यस्य तेन भगवताऽपहतास्त्रो निरस्तशस्त्रोऽधुना तु पुनरनुकम्पयाऽनुग्रहकरणबुद्धया सर्वेऽपि ऋतवस्तस्य कामस्य हितमुपयोगि यद्वस्तु तद्दित्सा दातुमिच्छा तया सुमश्रियां पुष्पशो. भायां मिताः पर्याप्ताः सन्तस्ते समिताः सममेकोभावेन प्राप्ता इत्युऽत्प्रेक्षालंकारः । 'कमनः कामुके चाभिरूपे चाशोककामयोः' इति विश्वलोचने ॥४७॥ मणिसंकणिसंविभालतस्त्ववधूतो नवधूलिशालतः । नयनारिरगादभावतां न निशावासरयोभिदोऽत्र ताः ॥४८॥ मणिसंकणीत्यादि-मणीनां नानाविधानां रत्नानां याः समीचीनाः कणयः कणिकास्तासां संविभां समीचीनां प्रभा लाति दधातीति ततो नवान्नूतनाद् धूलिशालतो रत्नरेणुनिमितवप्रतोऽवधूतो दूरीकृतो नयनारिरन्धकारः सोऽत्राभावतां गतो नैव विद्यतेऽतोऽत्र निशावासरयो रात्रिदिवसयोरपि ताः सुप्रसिद्धा भिदो न भवन्ति, सदा प्रकाश एव भवतीत्यनुप्रासोऽलंकारः ॥४८॥ समचिन्मम चित्तवृत्तितः सुगभीराऽऽशुगभीधराभितः । विशदा हि सवा तथाकृतेः परिखा संवरखा विराजते ॥४९॥ समचिदित्यादि-यत्र पुनः परिखा खातिका विराजते सा मम चित्तवृत्तितः समचित् समा समाना चिद् विवेचना यस्यास्सा विराजते यतः सा सुगभीराऽतलस्पर्शवत्यभि अर्थ-वहाँ सभी ऋतुएँ एक साथ प्रकट हुई थीं, उससे ऐसा जान पड़ता है कि शान्तिमें आनन्दकी अनुभूति करने वाले अर्हन्त भगवान्ने कामदेवको शस्त्ररहित कर दिया था, अब करुणाबुद्धिसे उसकी हितकारी वस्तु-देनेकी इच्छासे पुष्पोंकी शोभामें पूर्णताको प्राप्त छहों ऋतुएँ मानों एक साथ आई हैं ॥४७॥ अर्थ-यतश्च समवसरणमें विविध रत्नों सम्बन्धी समीचीन कणिकाओंकी प्रभाको धारण करने वाले नूतन धूलि सालसे अन्धकार नष्ट हो गया था, अतः वहाँ रात-दिन का भेद नहीं था । सदा प्रकाश ही विद्यमान रहता था ॥४८॥ अर्थ-उस समवसरणमें जो परिवार सुशोभित है, वह मेरी चित्तवृत्तिके समान है, क्योंकि जिस प्रकार मेरो चित्तवृत्ति सुगभीरा-अत्यन्त गम्भीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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