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________________ २९-३१] षड्विंशः सर्गः . ११८५ भयविस्मयसंरसाद् रसाऽऽपतिता प्रेतपतेरिवाऽत्र सा। कथितासिलता तपोभृताऽभ्युपगम्यास्य करेऽपिता सता ।।२९।। भयेत्यादि-अत्र सता तपोभृता तपोऽङ्गीकर्तुमिच्छता जयकुमारेणाभ्युपगम्य समादायास्यानन्तवीर्यस्य करेऽपिता दत्ता सा भयं च विस्मयश्च तयोः संरसादधिकारादापतिता प्रेतपतेर्यमराजस्य रसा जिह्वव कथिताऽसिलता खड्गवृत्तिरित्युत्प्रेक्षा. लंकारः ॥२९॥ प्रतियच्छत भो यथोचितामिह सन्मातृपदे नियोजिताः । सचिवाः शुचिवाचमास्पदे रुचिमानेष यतोऽस्तु नापदे ॥३०॥ प्रतियच्छतेत्यादि-भो सचिवा इह यूयं सन्मातृपदे पालनपोषणकरी मातेत्यर्थरूपे समीचीने नियोजितास्ततो यथोचितामवसरयोग्यां शुचिवाचमस्मै प्रतियच्छत संवदत यत एव आस्पदे स्थान एव रुचिमानस्तु तथा चापदेऽनुचिते स्थाने कदापि रुचिमान्नास्तु भवतु । अनुप्रासोऽलंकारः ॥३०॥ प्रभवेन्नृभवेऽयमुत्थितः स्ववृषे शुद्धिवृशेऽथवा चितः । न यतोऽस्तु किलाघचर्वणं प्रचराथर्वण तद्धि कार्मणम् ।।३१॥ प्रभवेवित्यादि-हे अथर्वण ! पुरोहित ! त्वमपि तद्धि कार्मणं क्रियानुष्ठानं प्रचर यतोऽयमघस्य पापस्य चर्वणं मास्तु नभवेऽस्मिन्नसुलभे मनुष्यजन्मनि स्ववृषे स्वोचिते धर्मे कर्तव्ये किलोत्थितः कटिबद्धस्सन् चितो बुद्धेः शुद्धिवृशे शुद्धनिर्दोषताया दृशे गवेषगार्य प्रभवेत् समर्थो भूयाविति । अनुप्रासोऽलंकारः ॥३१॥ अर्थ-तपको धारण करने वाले सज्जन जयकुमारके द्वारा स्वयं लेकर राजा अनन्तवीर्यके हाथमें सौंपी गई तलवार ऐसी जान पड़ती थी, मानों भय और विस्मयके अधिकारसे यमराजकी जिह्वा ही यहाँ आ पड़ी हो ॥२९।। अर्थ-जयकुमारने मन्त्रियोंको संबोधित करते हुए कहा कि हे मन्त्रियों ! आप समीचीन मातृपद-माताके स्थानपर नियुक्त किये गये हैं, अतः उज्ज्वल वचन इसके लिये देवें जिससे यह योग्य स्थानमें रुचिमान हो, अपद-अनुचित स्थानमें रुचिमान् न हो ॥३०॥ ___ अर्थ-निवर्तमान राजा जयकुमारने संबोधित करते हुए कहा कि पुरोहित जी ! पापको नष्ट करनेवाला वह अनुष्ठान आप करें, जिससे यह दुर्लभ मनुष्य भवमें अदा आत्मधर्ममें कटिबद्ध रहे अथवा आत्मशुद्धिकी खोजके लिये समर्थ रहे ॥३१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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