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कीतिके साथ हुए युद्धके लिये क्षमा याचना, भरतके द्वारा जयकुमारके प्रति प्रेम प्रदर्शन । अयोध्यासे प्रस्थान करनेके बाद गंगामें हाथी पर व्यन्तरों द्वारा उपसर्ग। तट पर स्थित सुलोचनाके द्वारा महामन्त्रकी आराधना गंगादेवीके द्वारा हाथीका उपसर्ग दूर होना । गंगादेवीके
प्रति आभार प्रदर्शन । एकविंशतितम सर्ग
९६९-१००४ हस्तिनापुर पहुंचनेमें सैनिकोंकी उत्सुकता, सेनाका वर्णन, हस्तिनापुरमें स्वागत, गोपुरसे लेकर राजमहल तक दोनों ओर खड़े अपार जन समूहका वर्णन, हेमाङ्गद आदि सालोंके साथ जयकुमारका हास्य विनोद । सुलोचनाको आशीर्वाद देकर हेमाङ्गद आदिका वाराणसी वापिस पहुँचना तथा सब समाचार कहकर अकंपन महाराजको
प्रसन्न करना। द्वाविंशतितम सर्ग
१००४-१०५२ जयकुमार और सुलोचनाके दाम्पत्य प्रेमका वर्णन । प्रसङ्गवश चमत्कार पूर्ण ऋतु वर्णन । जयकुमारका प्रजा पालन, सुलोचना
का गृह-कार्य सम्बन्धी कौशल । त्रयो विंशतितम सर्ग
१०५३-१०८४ः आकाशमें जाते हुए विद्याधरोंके विमानको देखकर जयकुमारका मूच्छित होना तथा मूच्छित होनेके पूर्व 'प्रभावती' कहना । कबूतरकबूतरीका युगल देख सुलोचनाका भी मूच्छित होना और उसके 'हा रतिवर' कहना। दोनोंका शीतलोपचार हुआ। सुलोचनाकी सपत्नियोंमें अनेक प्रकारकी आशंकाओंका होना । इसी प्रसंगमें जयकुमारको अवधिज्ञानका होना और सुलोचनाको जाति स्मरण । सुलोचनाके द्वारा पूर्वभवोंका विस्तृत वर्णन । आकाशगामिनी
विद्याकी प्राप्ति । चतुर्विंश सर्ग
१०८५-११४० विद्यायें प्राप्त कर विमान द्वारा तीर्थ यात्राका वर्णन । कुलाचलोंकी यात्राके बाद जयकुमार और सुलोचना कैलास पर्वत पर गये । जयकुमारके द्वारा कैलासकी प्राकृतिक सुषमाका वर्णन । अलंकारोंकी विस्तृत छटा। जयकुमारका स्नानके अनन्तर जिनमन्दिर जाना, जयकुमारने जल, चन्दन आदि आठ द्रव्योंसे भगवान्की पूजा कर
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