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प्रथम संस्करण से
जयोदय महाकाव्य का प्रतिपाद्य विषय
चतुर्दश सर्ग -
स्वयंवरके बाद वाराणसीसे हस्तिनापुरकी ओर प्रयाण करते समय जयकुमार और सुलोचनाके साथ गङ्गा तट पर स्थित एक वनमें ठहरे । वनकी शोभा तथा वनमें युवा-युवतियोंकी वन क्रीड़ाका वर्णन । युवतियोंकी मुग्धताका युवाओं द्वारा छलपूर्ण उपयोग | विविध अलंकारोंकी छटा कविके काव्य कौशलको प्रकट करती है ।
पञ्चदश सर्ग -
सूर्यकी लालिमा, सूर्यका अस्त होना, दिशाओंमें क्रमशः अन्धकारका फैलना, घर घरमें दीपकोंका जलना, आकाशमें ताराओंका छिटकना, चन्द्रोदय, पतिके आगमन पर स्त्रियोंके हाव-भावका वर्णन । षोडश सर्ग --
सरितामें स्त्री पुरुषोंकी जलक्रीड़ाका सरस वर्णन | नवीन वस्त्रोंका ६८७-७०६
धारण करना ।
स्त्री पुरुषोंका सरस आलाप, पानगोष्ठी, दूती प्रेषण, सखियोंकी आलंकारिक- प्रणय कथाका वर्णन । प्रत्येक वर्णनमें कविकी अलौकिक प्रतिभाका प्रदर्शन |
सप्तदश सर्ग—
शृङ्गार वर्णन
अष्टादश सर्ग -
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प्रातःकालका वर्णन, कविकी काव्य प्रतिभाका पदे पदे प्रदर्शन ।
एकोनविंश सर्ग --
प्रातःकालिक क्रियाओं, धार्मिक अनुष्ठान, गणधर वलयके अन्तर्गत ऋद्धिधारी मुनियोंका पूजन आदि । ऋद्धि मन्त्रोंका समुल्लेख । विशतितम सर्ग
जयकुमारका अयोध्या जाना, प्रसंगवश अयोध्या वर्णन, राजसभामें जयकुमारका भरत चक्रवर्तीसे मिलना, स्वयंवरके बाद वाराणसी में अर्क
पृष्ठ ६६८-६८७
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७५४-७८८
७८९-८२२
८२३-८८६
८८७-९२९
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