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________________ ११६६ जयोदय- महाकाव्यम् [ ७०-७२ अपि तु बाह्यक वस्तुनिबन्धनेऽभ्यनु रतस्तनुमान् ननु धन्धने । अनयनो नितरां निजगन्धने व्रजति हा विपदामनुबन्धने ॥७०॥ अपि त्वित्यादि - अयं तनुमान् ननु नियमेन बाह्यकानि वस्तूनि स्त्रीपुत्रादीनि तान्येव निबन्धनानि कारणानि यस्य तस्मिन् धन्धने कार्यव्यापारेऽभ्यनुरतो विलग्नोऽपि तु सततमेव, किन्तु निजस्य गन्धने सम्बन्धे नितरामनयनो जात्यन्ध एव हा खेदप्रदर्शनार्थम् तत एव विपदां विपत्तीनामनुबन्धने प्रत्यनुवर्तने व्रजति सम्पतितोऽस्ति । 'गन्धो गन्धके सम्बन्धे' इति विश्वलोचने, 'गन्धो गन्धक आमोदे लेशसम्बन्धगर्वयोः' इति चान्यत्र । अनुप्रासोऽलंकारः ॥७०॥ हसति रौति च मूच्छंति वेपते तनुभृवेष किलापगतो धृतेः । भ्रमति सर्वत एव भिया स कौ भवति भूतनिवास इवासकौ ॥ ७१ ॥ हसतीत्यादि - एष तनुभृद् देहधरो धृतेरपगतो धैर्यंहोनो भूत्वा कदाचिदिष्टसमागमे हसति तदपगमे च रौति पुनरनिष्टसमागमे वेपते कम्पमेति वा मूर्च्छति वा पुनः स भिया भयवशेन को पृथिव्यां सर्वत एव भ्रमति एवमसावेवासको भूतनिवास: प्रेतगृहीत इव भवति न कश्चिद्विशेषः किलात्र ॥ ७१ ॥ हितमवैति न कश्चन वै जनस्तदितरस्य तु संशयितं मनः । परमये विपरीतरुचा धृतं जगदिदं सकलं तमसाऽऽवृतम् ॥७२॥ हितमित्यादि - कश्चनैकस्तु जनो हितं मङ्गलकरं वृत्तमवैत्येव वै न, शृणोत्येव न, करना चाहिये, अर्थात् विवेकपूर्वक धर्माचरण करना चाहिये । उसीसे कर्मनिर्जराका योग प्राप्त होता है || ६९ || अर्थ - यह प्राणी नियमसे बाह्य वस्तु - स्त्रीपुत्रादि रूप कारणोंसे युक्त धन्धन - सांसारिक व्यापार में संलग्न है, किन्तु निजसे सम्बद्ध कार्यके विषय में अनयन -जन्मान्ध है । खेद है कि यह जीव विपत्तिके कारणों में ही पड़ा है ॥७०॥ अर्थ - यह प्राणी धैर्यहीन हो कभी इष्टका समागम होने पर हँसने लगता है, कभी इष्टका वियोग होने पर रोने लगता है, कभी अनिष्ट समागमकी आशङ्कासे काँप उठता है और भयसे सर्वत्र भ्रमण करता है - रक्षाकी दृष्टिसे इधर उधर भागता है। इस प्रकार यह भूतगृहीत-पिशाचाक्रान्त जैसा हो रहा है ॥ ७१ ॥ अर्थ – कोई एक मनुष्य हितको जानता ही नहीं है- उसे सुनता ही नहीं है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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