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३६-३८]
पञ्चविंशतितमः सर्गः नर ! नवाध्वयुते ननु ते किल स्थितिमुपैति सुगो विहगोऽनिलः । तदिदमेवमहो भुवि पउजरे किमत चित्रमिती यदि निस्सरेत् ॥३६॥
नरेत्यादि-ननु हे नर ! योऽनिलो निःश्वासरूपो विहगः पक्षी सोऽस्मिन् नवाध्वयुते नवसंख्यकरध्वभियुते पजरे शरीररूपे सुखेन गन्तुं समर्हः सुगोऽपि किल स्थितिमुपैति तदिदमेव मह उत्सवयोग्यमितो यदि स निस्सरेत्तदा किमु चित्रमद्भुतमिति । रूपकालंकारः ॥३६॥ शशिहरो भविता सविता पिता तदुदयेन हसिष्यति पङ्कजम् । अलिनि चिन्तयतीति विसस्थिते द्रुतमिहोद्भजतेऽम्बुजिनी गजः ॥३७॥
शशिहर इत्यादि-रक्षकत्वाद्विकासदायकत्वाता पिता पितृतुल्यः सविता सूर्यः शशिहरो कमलवैरिचन्द्रहरः सन् भविता उदेष्यति, सूर्यो वा चन्द्रापहारको भविष्यति, तस्य सूर्यस्योदयेन पङ्कजं कमलं हसिष्यति विकासमेष्यति, इत्येवं विसस्थिते कमलदलान्त:स्थितेलिनि भ्रमरे चिन्तयति विचारयति सति गजः करीह जगति द्रुतं शीघ्रमम्बुजिनों कमलिनी भजते सेवते त्रोटयित्वा भक्षयतीति यावत् । अनुप्रासोऽलंकारः ॥३७॥ गतगदोऽशनिनैष कटाक्ष्यते तदहतो भुजगाग्निविषादिभिः । इति कृतान्तसमाजमये भवे स्थितिरिहास्य किच्चिरमस्तभीः ।३८॥
चावलोंको प्रसन्नतासे खाता है पर मृत्युकी ओर नहीं देखता। यह दुःखकी बात है ॥३५॥
अर्थ-हे नर ! यदि नौ द्वारोंसे युक्त पिंजरे में अच्छी तरह उड़नेकी योग्यता वाला श्वासोच्छ्वासरूपी पक्षी स्थित रहता है तो यही बड़े उत्सवकी बात है, यदि निकल जावे तो इसमें क्या अश्चर्य है ? कुछ भी नहीं ॥३६॥ ___ अर्थ-कमलके भीतर बन्द भ्रमर विचार करता है कि पितातुल्य सूर्य चन्द्रमाको नष्ट करने वाला होगा, उसके उदयसे कमल खिलेगा, अभी रात्रिभर सुगन्धका सेवन कर लेना चाहिये । परन्तु उधर भ्रमर उपर्युक्त विचार करता ही रहा, इधर हाथीने शीघ्र आकर कमलिनीको खा लिया।
भावार्थ-जगत्के प्राणी विषयोंका संकल्प करते-करते बीच में नष्ट हो जाते हैं ॥३७॥ १. होगी निशा विगत और प्रभात होगा
__ होगा उदित रवि पंकज भी खिलेंगे। ऐसा सरोजगत भृङ्ग रहा विचार
हा हन्त हन्त नलिनी गज उज्जहार ॥
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