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________________ ११४२ जयोदय-महाकाव्यम् [ ४.६ सुखं तच्च सुरधनुराकाशे प्रस्फुटमिन्द्रधनुरिव चलं भाति । तथा ऋष विभवः पुत्रपौत्रादिसमागमः सुप्तस्य विकल्पवत् स्वप्नतुल्यमस्तीति, अवोऽखिलमपि दृश्यमध्रुवं क्षणिकमेव । अहहेति महवद्भुतमेतत् । उपमालंकारः ॥३॥ युवतयो मृगमञ्जुललोचनाः कृतरवा द्विरवा मदरोचनाः । लहरिवत्तरलास्तुरगा वले क्षणत एव न किन्तु चलाचले ॥४॥ युवतय इत्यादि-वले सैन्ये मृगस्येव मजुले मनोहरे लोचने यास ता युवतयो लसन्ति, कृतरवा गर्जनाकारिणस्तथा महेन दानेन रोचना रुचिर्येषां ते द्विरवा हस्तिनस्तथा तुरगा हया अपि लहरिवज्जलकल्लोलसवृशास्तरलाः शीघ्रगामिनः सन्ति, किन्तु सर्वमेतत्क्षणत एष चलाचलेऽस्मिन् वृश्यते । उपमैवात्र ।।४॥ लवणिमाम्जवलस्थजलस्थितिस्तरुणिमायमुषोऽरुणिमान्वितिः। लसति जीवनमञ्जलिजीवनमिह दधात्ववधि न सुधीजनः ॥५॥ लवणिमेत्यादि-लवणिमा सौन्दर्यप्रसरः सोऽज्जवलस्थस्य कमलपत्रगतस्य जलस्य स्थितिरिव स्थितिर्यस्य सोऽस्ति । तरुणिमा यौवनभावश्चोषसः सन्ध्यासमयस्य योऽरुणिमा लालिमा तदन्वितिर्यस्य सोऽस्ति । जीवनमायुष्यं च जनस्याजलौ यज्जीवनं जलं तविव लसति । सुधीजन इह कमप्यवधि कालमर्यादा न बधातु । उपमैवालंकारः ॥५॥ न भविनो दिवसा इव शाश्वता मितिरहनिशयोरिह सम्मता । स्फुटमनाथ इतो नरनाथतां प्रमुवितो रुवितं पुनरीक्यताम् ॥६॥ है। खेद है कि दिखायी देने वाला सब कुछ अनित्य है, स्थिर रहने वाला नहीं है ॥३॥ अर्थ-सेना में मृगके नेत्रोंके समान मनोहर नेत्रों वाली युवतियाँ हैं, गर्जना करने वाले मदस्रावी हाथी हैं और तरङ्गके समान चञ्चल घोड़े हैं, किन्तु इस अत्यन्त चञ्चल-भगुर संसारमें यह सब क्षणभर भी नहीं दिखायी देने वाले हैं, अर्थातु क्षणभरमें नष्ट हो जाने वाले हैं ॥४॥ अर्थ-लावण्य कमलदल पर स्थित जलके समान है, यौवन प्रातःकालकी लालिमाका अनुसरण करने वाला है और मनुष्यका जोवन अञ्जलिमें स्थित जलके समान क्षीयमाण है। इसलिये ज्ञानीजन इनके विषयमें समयकी अवधि न करें, अर्थात् ऐसा विचार न करें कि यह वस्तु इतने समय तक हमारे पास रहेगी॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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