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________________ १२५-१२७ ] चतुर्विशः सर्गः ११३३ स्मरोहितः पीत इतः स यावन्नैकान्तकस्तिष्ठति शुद्धवर्णः । श्यामापि सा रक्ततया लसन्ती चित्रानुरूपा धवला बभूव ॥१२५।। स्मरोहित इत्यादि-स शुद्धवर्णः पवित्रजातीयः श्वेतरूपो वा पीतः पिशङ्गो रोहितो रक्तश्च सन् यावन्नैकान्तकोऽनेकरूपो भूत्वा तिष्ठति स्म तथा स्मर इति रूपेणोहितस्तकविषयीकृतः सम्यगवलोकितोऽपि चैकान्तक एकान्तको भूत्वा यावन्न तिष्ठति तावत् सा श्यामापि नवयौवनस्वरूपा चित्रानुरूपा चित्रा नाम स्वर्गवेश्या तदनुरूपा रक्ततयाऽनुरागवत्तया लसन्ती धवला प्रियस्याभिलाषावती तथा श्यामा कृष्णवर्णाऽरुणवर्णात्मिका धवला श्वेतरूपा चेति चित्रानुरूपा नानावर्णा बभूति श्लेषोऽलंकारः ॥१२५॥ पुनः सखीनामनुशासनेन चिरेण चाशासहिता सती सा। विराजिता धामनि धाममूर्तेमति तु चित्ते बत चिन्तयन्ती ॥१२६॥ पुनरिति-पुनरपि सखीनां सहचरीणामनुशासनेनाश्वासनदानेन चिरेण चाशासहिताभिलाषवती सा सती धाममूर्तेस्तेजस्विनस्ते मूर्तिमाकारं तु चित्ते चिन्तयन्ती बत -सकष्टं धामनि स्वस्थाने विराजिताऽभूत् ॥१२६॥ भाग्यानुयोगात् सहसाभ्युपात्तस्तया स चिन्तामणिरित्युदात्तः। समर्थयत्वर्थमथानवद्या प्रवर्तते चेदिह भावविद्या ॥१२७॥ अर्थ-शुद्धवर्ण-पवित्र जातीय अथवा श्वेतरूप, पीत-पीतवर्ण और रोहितलालवर्ण वाले जयकुमार जब तक नैकान्तक-अनेकरूप होकर स्थित रहे (पक्षमें स्मरोहित-यह स्मर-कामदेव है इस तर्कणाके विषयभूत और पोतअच्छी तरह अवलोकित होकर भी एकान्तात्मक-होकर स्थित न हो सके तब तक वह स्वर्गवेश्या भी श्यामा-नवयौवनवती, चित्रानुरूपा-नित्रा नामके अनुरूप रक्ततया-अनुरागसे युक्त होनेके कारण शोभायमान और धवलाघवं पुरुष लाति गृह्णातीति धवला) प्रियविषयक अभिलाषासे युक्त होती हुई, श्यामा-कृष्णवर्ण, रोहिता-अरुणवर्ण और धवला-श्वेतवर्ण रूप इस प्रकार चित्रानुरूपा-नाना रूप वाली हो गई। भावार्थ-उस चित्रा नामक देवीने अपने नामके अनुकूल विविध रूप दिखलाये ॥१२५॥ __ अर्थ-फिर भी सखियोंके आश्वासनसे चिरकालोन आशा लगाये हुई वह अपने चित्तमें आप तेजस्वीकी मूर्ति-आकृतिका चिन्तन करती हुई अपने स्थानमें स्थित है ॥१२६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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