SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 511
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १११६ ज्योदय-महाकाव्यम् [७९-८० तथाहतोऽग्ने बहुशस्यवृत्तिनाऽथ तेन कृष्णागुरुणा महात्मना । प्रमोदिना सम्प्रति कृष्णावर्त्मनि जवेन नीलाम्बरता प्रकाशिता ॥७९।। तथेत्यादि-तथा पुनरहंतोऽग्र सम्प्रति बहुशस्या प्रशंसायोग्या वृत्तिश्चेष्टा यस्याथवा बहुशस्या वृत्तिबंहुव्रीहिसमासो यस्य तेन बहुशस्यवृत्तिना कृष्णोऽगुरुराल्लघुभ्राता यस्य तेन कृष्णागुरुणा महात्मना गन्धापेक्षया विपुलरूपेणाथवा महापुरुषेण प्रमोदिना सुगन्धयुक्तेन कृष्णवर्त्मनि वह्नौ नीलाम्बरता धूमेन कृतं नीलमम्बरमाकाशं येन तत्ता तथा कृष्णस्य नारायणस्य वर्त्मनि पद्धती सहवर्तितया नीलाम्बरता नीलमम्बरं वस्त्रं यस्य तत्ता बलदेवता प्रकाशितेति समस्तीह समासोक्तिरलंकारः ॥७९॥ सुनालिकेरं निजमस्तकाकृति समीरयामास पुनः समी रयात् । स्वयंभुवः सन्दयितः स्वयंभुवः पदेषु सन्देशपदेषु च श्रियः ।।८०॥ .., सुनालिकेरमित्यादि-पुनः स समो समताभावी भुवः पृथिव्याः सन्दयितः प्रियतमो जयः श्रियो लक्ष्म्याः सन्देशपदेषु स्थानेषु स्वयंभुवोऽहंतः-पदेषु, पूज्यत्वात् बहुवचनमत्र, निजमस्तकस्याकृतिरिवाकृतिर्यस्य तन्नालिकेरं नाम फलं स्वयं समीरयामास समर्पयामासेत्यत्र यमकालंकारः ॥८०॥ अर्थ-अत्यन्त प्रशंसनीय वृत्तिसे सहित उदारहृदय तथा प्रमोदसे युक्त जयकुमारने अर्हत भगवान्के आगे अत्यन्त सुगन्धित कृष्णागुरु चन्दनकी धूप अग्निमें निक्षिप्त कर उसके धूमसे आकाशको नीला-नीला कर दिया । . 3.: अर्थान्तर-उस धूपने नीलाम्बरता बलभद्रता, प्रकाशितकी थी, क्योंकि जिस प्रकार बलभद्र बहुशस्यवृत्ति-बहुत धान्यका संग्रह करने वाले थे उसी प्रकार धूप भी बहुशस्यवृत्ति-अत्यन्त प्रशंसनीय चेष्टावाली थी, जिस प्रकार बलभद्र कृष्णागुरु थे-कृष्ण नामक लघु भाईसे सहित थे उसी प्रकार धूप भी कृष्णागुरु-अगुरु चन्दनसे निर्मित थी, जिस प्रकार बलभद्र महात्मा-उत्कृष्ट .. आत्मा वाले थे उसी प्रकार धूप भी महात्मा-सुगन्धकी अपेक्षा उत्कृष्ट रूप थी, जिस प्रकार बलभद्र प्रमोदी-हर्ष सम्पन्न थे उसी प्रकार धूप भी प्रमोदी-दूर तक फैलने वाली प्रकृष्ट गन्धसे सहित थी, जिस प्रकार बलभद्र कृष्णवर्त्म-श्रीकृष्णके मार्गानुयायी थे उसी प्रकार धूप भी कृष्णवर्त्म-अग्निको अनुयायी थी अर्थात् अग्निमें प्रक्षिप्त की जाती थी और जिस प्रकार बलभद्र नीलाम्बर-नील वस्त्र धारण करने वाले थे उसी प्रकार धूप भी नीलाम्बरआकाशको नीला करने वाली थी ।।७९|| अर्थ-तदनन्तर समताभावी एवं पृथिवीके प्रियतम जयकुमारने लक्ष्मीके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy