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________________ ७७-७८ ] चतुर्विशः सर्गः समर्पितं सुमन्जुलमतिमनोहरं सुमं पुष्पं किल तदीयं जयकुमारसम्बन्धि मन एवात्मनः सज्जातिकयोस्तन्मनसोऽपि किलाम्बुजोपमत्वात् परिचेतु ताभ्यां सह परिचयं कर्तुमागतमित्युत्प्रेक्षा ॥७॥ जिनेश्वराने जवलेविकामसौ न तावदावर्तवती जयायः । समुत्ससर्जाशु विनेयताश्रितोऽथ संसृति किन्तु मुमोच तच्छलात् ॥७७॥ जिनेश्वरान इत्यादि-अथासौ जयाह्वयस्तावन्नैवेद्यपूजावसरे जिनेश्वरस्याग्ने संमुखत आवर्तवती नाम जवलेविका न समुत्ससर्ज, किन्तु विनेयताया विनीतभावस्याश्रयः स तस्याश्छलावाशु शीघ्र संसृतिमेव मुमोचेत्यपह नुतिः ॥७॥ व्यमुञ्चदेकार्थतयेकतां गतौ स रागरोषाविह दोपदम्भतः । निजक्रियासम्भ्रमिदशिनौ पुनर्जवाज्जयः स्वस्वकवर्णलक्षणी ॥७॥ ___व्यमुञ्चदित्यादि-पुनर्जयो जवावनन्तरं शीघ्रमेव बीपवम्भतो दोपकस्य छलत इह जिनपूजावसरे किलकोऽर्थः प्रयोजनं संसारसम्बन्धरूपं तत्तया तावेकतां गतो स्वत्वकवर्णावेव भासुरताकज्जलतारूपी लक्षणे ययोस्तो निजक्रिया या सम्भ्रमिस्तस्या वशिनी तो व्यमुञ्चविय मप्युह नुतिरलंकारः ॥७॥ मनोहर पुष्प ऐसा सुशोभित हो रहा था मानों अपने समानजातीय एवं प्रसन्न भगवान्के चरणकमलोंसे परिचय करनेके लिये उनका हृदय ही आया हो ॥७६।। ___ अर्थ-विनीत भावके आश्रयभूत जयकुमारने जिनेन्द्र भगवान्के आगे धुमावदार जलेबी नहीं चढ़ायी थी, किन्तु उसके छलसे शीघ्र ही अपना संसार छोड़ दिया था। भावार्थ-जिस प्रकार संसृति-संसार चतुर्गतिके परिभ्रमण रूप है, उसी प्रकार जलेबी भी परिभ्रमण रूप-धुमावदार थी, अतः उसमें जलेबीका अपह्नव किया गया है ॥७॥ अर्थ-तदनन्तर जयकुमारने शीघ्र ही दीपकके छलसे एक प्रयोजनताको प्राप्त रागद्वेषको छोड़ दिया था, क्योंकि रागद्वेष और दीपक-दोनों ही अपनी अपनी संभ्रमण रूप क्रियाको दिखा रहे थे तथा दोनों ही अपने वर्णरूप लक्षणको धारण करने वाले थे। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार दीपक, प्रकाश और कज्जल रूप होते हैं, वायुके वेगसे सम्भ्रमिरूप-हलन चलन रूप होते हैं, उसी प्रकार रागद्वेष भी शुभ-अशुभ रूप होते हैं और संसार परिभ्रमणके कारण कहलाते हैं |७८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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