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एक विचित्र कल्पना देखियेभ्रष्टोडुमौक्तिकवदुच्चलरक्तरीति
____ध्वान्तेभकुम्भभिदितो रविकेशरीति । दृष्ट्वा ततः प्रभवदुत्कलितां महीं ता
___ मेषोऽस्ति पालितपृषद् द्विजराट् मचिन्तः ।।७८।। प्रातलामें नक्षत्र नष्ट हो जाते हैं, आकाशमें लालिमा छा जाती है और चन्द्रमा कान्ति हीन हो जाता है । ऐसा क्यों होता है ? इस सन्दर्भ में कविकी कल्पना है--नक्षत्र रूपी मोतियोंको विखेरता और अरुणता रूपी खूनके गुब्बारोंको ऊपरको ओर उड़ाता हुआ सूर्य रूपी बब्बरसिंह अन्धकार रूपो हाथीके मस्तकको भेदकर इस ओर आ रहा है यह देख पृथिवी पर व्याकुलता छा गई। कमलकी कलियोंके बहाने उसका हृदय फट गया। इस घटनासे अपने भीतर हरिणकी रक्षा करने वाला चन्द्रमा विचारता है कि जब सूर्य रूपी बर्बर शेरने हाथीको नहीं छोड़ा तब हमारे हरिणको कैसे छोड़ेगा? इस चिन्तासे ही मानों चन्द्रमा कान्तिहीन हो गया ।
जिस समय इस काव्यका निर्माण हुआ था उस समय भारतमें गांधीजी, नेहरू परिवार, राजगोपालाचार्य, राजेन्द्र प्रसाद, सरोजिनी नायडू तथा जिन्ना आदि राजनेता प्रसिद्ध हो रहे थे। कविने उन सबका नाम श्लेषालंकार द्वारा इस जयोदय काव्यमें बड़ी श्रद्धासे अभिव्यक्त किया है। यह चातुर्य कहीं अन्यत्र नहीं दिखाई देता । कविकी इस प्रतिभा पर आश्चर्य चकित होना पड़ता है । देखियेयद्वा सुगां धियमिता विनतिस्तु राज
गोपाल उत्सवधरस्तव धेनुरागात् । हृष्टा सरोजिनि अथो विषमेषु जिन्ना
नुष्ठानमेति परमात्मविदेकभागात् ।।८३॥ हे राजन् ! आपकी विनीतता उत्तम गतिशील बुद्धि को प्राप्त है, आपकी गोरक्षा की प्रीतिसे राजके सब गोपाल-गोरसके आनन्द मना रहे हैं। इस प्रातवेलामें सरोजिनीकमलिनी हर्षित-विकसित है और मदन विजयीपुरुष अपने आप की परमात्मा, परब्रह्म का एक अंश माननेसे संध्या वन्दनादि अनुष्ठान-प्रशस्त कार्य कर रहे हैं ।
श्लेष से प्रकट होनेवाला दूसरा अर्थ भी देखिये
हे राजन् ! आपकी विनम्रता या शिक्षा गांधीजी को विनम्रता या शिक्षाका अनुसरण कर रही है, आपको गो प्रेमसे राजगोपालाचार्य आनन्द का अनुभव कर रहे हैं तथा सरोजिनी नायडू प्रसन्न हैं। सिर्फ एक और जिन्ना नामक यवन नेता परकीय भारतको अपना मानते हुए विपम-पारस्परिक विरोधके कार्योंमें-हिन्दुस्तान-पाकिस्तानके विभाजनका अनुष्ठान कर रहे हैं ।
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